सेना का अपमान हमसे
अब सहन नहीं होगा,
देश से गद्दारी का भार
अब वहन नहीं होगा।
नमक खाकर इसी देश का
नमकहरामी करते हैं,
सेंध लगाने वालों की
दिन-रात गुलामी करते हैं।
बचाने को इनको हर आपदा से
अपनी जान पर जो खेल जाते हैं,
चंद रूपयों में बेच के खुद को
ये उन पर पत्थर बरसाते हैं।
इनके आकाओं की कमी
नहीं है अपने ही भारत देश में
नींव खोखला करने को
बैठे हैं शुभचिंतक के भेष में।
ऐसे बगुला भक्तों की
शह पाकर ही ये जीते हैं
इंसानों की शक्लों में ये
इंसानियत से रीते हैं।
सेना पर पत्थर फेंकें या
थप्पड़ मारें गाल पर
जानते हैं पैरवी करेंगे आका
इनकी हर इक घटिया चाल पर।
पर चेत जा अब बदल तरीका
विनती है सरकार से
बातें बहुत कर लीं तुमने
अब ये समझेंगे बस मार से।
सेना के हाथ नहीं बाँधो
अब कानूनों की डोर से
निपटने की छूट उन्हें दे दो
अब इन कश्मीरी ढोर से।
संसद में चिल्लाने वालों को
अब नया आइना दिखाना होगा,
देशद्रोह और देशप्रेम का
अंतर इनको समझाना होगा।
जो पैर उठे हमारे जवान पर
उसे धड़ से जुदा करना होगा,
भारत माँ के आँचल को इनके
लहू से अब रंगना होगा।
हाथ खोल के सेना के
चुप बैठ के बस जलवा देखो,
लोकतंत्र मुर्दाबाद कहने वाली
जिह्वा को हलक से लटकता देखो
लाल देश के परम वीर हैं
क्यों बेबस इनको करते हो
दिखाने दो औकात शत्रु की
क्यों व्यर्थ समय तुम करते हो।
एक-एक थप्पड़ के बदले देखो
ये दस-दस हाथ गिराएँगे
पत्थर मारने वाले हाथों में
फिर तिरंगे लहराएँगे।
अब सहन नहीं होगा,
देश से गद्दारी का भार
अब वहन नहीं होगा।
नमक खाकर इसी देश का
नमकहरामी करते हैं,
सेंध लगाने वालों की
दिन-रात गुलामी करते हैं।
बचाने को इनको हर आपदा से
अपनी जान पर जो खेल जाते हैं,
चंद रूपयों में बेच के खुद को
ये उन पर पत्थर बरसाते हैं।
इनके आकाओं की कमी
नहीं है अपने ही भारत देश में
नींव खोखला करने को
बैठे हैं शुभचिंतक के भेष में।
ऐसे बगुला भक्तों की
शह पाकर ही ये जीते हैं
इंसानों की शक्लों में ये
इंसानियत से रीते हैं।
सेना पर पत्थर फेंकें या
थप्पड़ मारें गाल पर
जानते हैं पैरवी करेंगे आका
इनकी हर इक घटिया चाल पर।
पर चेत जा अब बदल तरीका
विनती है सरकार से
बातें बहुत कर लीं तुमने
अब ये समझेंगे बस मार से।
सेना के हाथ नहीं बाँधो
अब कानूनों की डोर से
निपटने की छूट उन्हें दे दो
अब इन कश्मीरी ढोर से।
संसद में चिल्लाने वालों को
अब नया आइना दिखाना होगा,
देशद्रोह और देशप्रेम का
अंतर इनको समझाना होगा।
जो पैर उठे हमारे जवान पर
उसे धड़ से जुदा करना होगा,
भारत माँ के आँचल को इनके
लहू से अब रंगना होगा।
हाथ खोल के सेना के
चुप बैठ के बस जलवा देखो,
लोकतंत्र मुर्दाबाद कहने वाली
जिह्वा को हलक से लटकता देखो
लाल देश के परम वीर हैं
क्यों बेबस इनको करते हो
दिखाने दो औकात शत्रु की
क्यों व्यर्थ समय तुम करते हो।
एक-एक थप्पड़ के बदले देखो
ये दस-दस हाथ गिराएँगे
पत्थर मारने वाले हाथों में
फिर तिरंगे लहराएँगे।
मालती मिश्रा
Bahoot Sunder... Satya Vachan...Vastav mein jab tak Sena k haath nahi khulenge tab tak kashmir ka bhala nahi ho sakta.
जवाब देंहटाएंसंतोष नेगी जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है। अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए धन्यवाद।
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