आजकल चारों ओर राजनीति का माहौल गरम है और ऐसे में गुजरात पर सबकी नजर है। अन्य राज्यों में तो जनता की बेसिक जरूरतों को और राज्य के विकास को मुद्दा बनाया जा सकता है लेकिन गुजरात के लिए तो ये मुद्दा हो ही नहीं सकता था इसलिए जनता को बरगलाने के लिए वही सदाबहार चाल चली गई कि 'जनता को आपस में बाँट दो और राज करो' इसके लिए फिर वही आरक्षण का मुद्दा..... अब देखना ये है कि गुजरात की जनता कितनी समझदार है? क्या आरक्षण जैसा मुद्दा उसे अपने राज्य और देश के विकास में बाधा डालने के लिए विवश कर सकता है?
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