मंगलवार

सौतेली..

सौतेली..
चाय की ट्रे लेकर जाती हुई उर्मिला के पाँव एकाएक जहाँ थे वहीं ठिठक गए, जब उसके कानों में पड़ोस की प्रभावती ताई की आवाज पड़ी, जो उसकी माँ से कह रही थीं, "अरे नंदा कब तक घर में बैठा कर रखेगी जवान विधवा बेटी को? अभी तो उसकी पूरी जिंदगी पड़ी है सामने। जब तक तू और भागीरथ...

रविवार

मैं औरत हूँ

मैं औरत हूँ
एक दिन एक पुरुष को अपनी पत्नी पर चिल्लाते उसे धमकाते देखा, जो कह रहा था *"औरत है, औरत बनकर रह, मर्द बनने की कोशिश मत कर।"* उस घटना से मेरे मन में उपजे भावों को पंक्तिबद्ध करने का प्रयास किया है.. मैं औरत हूँ औरत ही रहूँगी मर्द नहीं बनना मुझको हे पुरुष! नाहक ही तू डरता...

बुधवार

फागुन आया

फागुन आया
फागुन आया हवाओं की नरमी जब मन को गुदगुदाने लगे  नई-नई कोपलें जब डालियाँ सजाने लगें,  खुशनुमा माहौल लगे, मन में उठें तरंग  तब समझो फागुन आया, लेकर खुशियों के रंग।  खिलते टेसू पलाश मन झूमे होके मगन  पैर थिरकने लगे नाचे मन छनन-छनन, बैर-भाव भूलकर...

रविवार

अतीत के पन्नों में झाँकती कहानियाँ

अतीत के पन्नों में झाँकती कहानियाँ
अतीत के पन्नों में झाँकती कहानियाँ: कहानी-संग्रह – इंतज़ार ‘अतीत के पन्नों से’ लेखिका – मालती मिश्रा प्रकाशन – समदर्शी प्रकाशन, भिवानी पृष्ठ – 146 कीमत – 175/- अतीत के पन्नों में झाँकते हुए मालती मिश्रा...

शनिवार

नारी सम्मान

नारी सम्मान
नारी सम्मान यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमंते तत्र देवताः कहा जाता है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का निवास होता है किन्तु आधुनिक समाज में नारी को पूजा की नहीं आदर की पात्र बनने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। यह विषम परिस्थिति मात्र कुछ महीनों या कुछ वर्षों...

रविवार

पीठ में खंजर घोंप रहे

पीठ में खंजर घोंप रहे
पीठ में खंजर घोंप रहे समय की धारा हर पल बहती, मानव के अनुकूल, तीन सौ सत्तर कैसी धारा' बहे सदा प्रतिकूल। जो है निरर्थक नहीं देश हित, पैदा करे दुराव, खत्म करो वो धाराएँ जो नहीं राष्ट्र अनुकूल।। व्याधियों से लड़ते-लड़ते बीते सत्तर साल, बनकर दीमक चाट रहे जो, वही बजाते गाल। जुबां...