बुधवार

पहली गुरु

पहली गुरु
 पहली गुरुजेल की छोटी सी कोठरी में फर्श पर घुटनों में मुँह छिपाए बैठा था ऋषि। उसके साथ ही दो और कैदी थे जो आपस में ही कुछ बतिया रहे थे और बीच-बीच में हिकारत भरी नजर से उसकी ओर देख लेते। उसके कानों में उन दोनों की बातें पिघले शीशे की मानिंद उतर रही थीं, उनमें से एक...

गुरुवार

सिनेमा का समाज को योगदान

सिनेमा का समाज को योगदान
 सिनेमा का हमारे देश को योगदानएक समय था जब शिक्षा को मानवीय विकास का आधार माना जाता था, लोग धार्मिक पुस्तकें पढ़ते थे, वेद और पुराण पढ़ते थे, दन्त कथाएँ पढ़ते थे और उनके द्वारा अपनी संस्कृति और परंपराओं से परिचित होते थे। तब लोगों में छोटे-बड़े के प्रति प्रेम और सम्मान...

मंगलवार

समीक्षा- 'वो खाली बेंच'

समीक्षा- 'वो खाली बेंच'
कहानी संग्रह   *वो खाली बेंच*लेखिका- मालती मिश्रा समीक्षा- रतनलाल मेनारिया 'नीर'मालती मिश्रा जी की कहानी संग्रह की चर्चा करने से पहले इनके परिचय के बारे जानना आवश्यक है। वैसे मालती जी का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इनका परिचय खुद इनकी कहानियाँ...

गुरुवार

मैं.. सिर्फ मैं हूँ

मैं.. सिर्फ मैं हूँ
मैं आज की नारी हूँसक्षम और सशक्त हूँ,शिक्षित और जागृत हूँसंकल्पशील आवृत्ति हूँ।नारी की सीमाओं सेमान और मर्यादाओं से,पूर्ण रूर्पेण परिचित हूँ।परंपरा की वाहक हूँसंस्कृति की साधक हूँ,घर-बाहर के दायित्वों कीअघोषित संचालक हूँ।पढ़ी-लिखी परिपूर्ण हूँस्वयं में संपूर्ण हूँ,गलतियों...