शुक्रवार

आदर्श विद्यार्थी....."एक सोच"

                         आदर्श विद्यार्थी…”एक सोच”
मैंने अपने अध्यापन के लगभग १६-१७ सालों के करियर में शिक्षक और शिक्षार्थी के विभिन्न आयामों को देखा है, उनके बदलते विचारों, बदलती मान्यताओं को देखा है ा हमेशा मुझे ऐसा लगता रहा कि ये तो आधुनिक छात्र हैं तो हमें इनको इन्ही के तरीके से पढा़ना और समझाना पड़ेगा ा
मैं ये मानती हूँ कि समय के साथ-साथ सिर्फ रहन-सहन में ही परिवर्तन नही आता बल्कि मनुष्य की मानसिकता भी परिवर्तित होती है, यदि आज पुराने जमाने के ‘चेलों’ के जैसे बिना तर्क-वितर्क किए आँख बंद करके गुरु पर विश्वास करके उनकी बात मानने वाले छात्र नहीं हैं तो पहले के जैसे शिष्य के भविष्य को ही अपना लक्ष्य बना लेने वाले गुरु भी तो नहीं हैं ा
अर्थात् शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों की मान्यताएँ परिवर्तित हुई हैं ा
पिछले कुछ सालों में छात्रों की बदलती मानसिकताओं तथा असफलता के उपरांत उनके द्वारा उठाए गए कदमों के कारण तत्कालीन सरकार के द्वारा शिक्षा की नीतियों में कई अहम् परिवर्तन किए गए, जिसने शिक्षा को अत्यंत सरल बना दिया, निःसंदेह दिन-प्रतिदिन छात्रों में सहिष्णुता का ह्रास होता जा रहा है, आज मैं जहाँ हूँ वहाँ के छात्रों को देखते हुए शिक्षक की स्थिति पर दया आती है, ऐसा प्रतीत होता है कि यदि छात्र ऐसे होते हैं तो शिक्षा क्यों नही औपचारिकता मात्र बन कर रह जाएगी!!!!!!
परंतु फिर विचार करती हूँ तो अहसास होता है कि सभी छात्र निरंकुशता नहीं चाहते, मात्र कुछ छात्र ही ऐसे होते हैं…मैंने तो इस विषय पर बाकायदा परीक्षण किया है कि शिक्षक सकारात्मक रूप से जो चाहे वो विद्यार्थियों से करवा सकता है..हाँ थोड़ा समय जरूर लगता है,
मैं अब भी अपने विद्यार्थयों को नये-नये विषयों पर जानने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ और कुछ हद तक सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं परंतु मुझे वो संतोष नही मिल पाता जो मैंने २०१० से २०१३ तक प्राप्त किया मैं दूर होते हुए भी आज भी उन छात्रों से जुड़ी हुई हूँ, जिन्होंने मुझे परिश्रम के उपरांत प्राप्त होने वाली सफलता से प्राप्त संतुष्टि का अहसास करवाया़..


अध्यापन तो मैं वर्षों से करती आई थी लेकिन मेरी क्षमताओं से मेरा परिचय मेरे इन्हीं होनहारों ने करवाया ा जहाँ उन्हें पढ़ाने वाले कुछ शिक्षकों का यह मत था कि ये बच्चे ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, आधुनिक सुविधाओं का अभाव है, वहीं इन बच्चों ने आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण शहरी छात्रों को पीछे छोड़ते हुए CBSE के शिक्षण पद्धति के अंतर्गत क्रियाकलापों को इस प्रकार अंजाम दिया कि मेरे साथ-साथ दूसरे सभी अध्यापक भी हैरान थे ा
इन बच्चों को पढ़ाते हुए कभी दिमाग मे ये प्रश्न नहीं आया कि प्राचीन समय मे शिष्य कैसे होते होंगे…. आज भी सोचती हूँ तो ऐसा लगता है कि निःसंदेह ऐसे ही होते होंगे ा मुझे नहीं पता कि आज वो बच्चे मुझे कितना याद करते हैं परंतु मैं आज भी उन्हे बहुत याद करती हूँ, अगर कोई मुझसे आदर्श विद्यार्थी की परिभाषा पूछे तो मैं कहूँगी जो गुण मेरे इन बच्चों में हैं वही गुण आदर्श विद्यार्थी में होते हैं…ये बच्चे जीते-जागते उदाहरण हैं आदर्श विद्यार्थी के ा..

अध्यापकों का सम्मान करना, समय पर गृहकार्य करना, अपनी यूनिफॉम खुद स्वच्छ रखना, कक्षा व स्कूल के नियमों का सख्ती से पालन करना, अनुशासन का पालन करना, कक्षा में अध्यापक की अनुपस्थिति में भी अनुशासन बनाए रखना, अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अध्यापक की भी सहायता करना….क्या इतना सब एक साथ एक ही स्थान पर देखने को मिल सकता है? हाँ ये सब एक साथ मेरी पूरी कक्षा में देखने को मिलता था ा आज यदि मैं किसी को उन विद्यार्थियों के विषय में बताती हूँ तो लोगों को ये अविश्वसनीय प्रतीत होता है, पर मैं जानती हूँ कि यही सत्य है ा मैने हिंदी विषय के क्रियात्मक कार्य के तहत सभी कक्षाओं में तरह-तरह के क्रियाकलाप करवाए…
और सभी छात्रों ने कुशलता पूर्वक किया भी, मेरे द्वारा दिए गए कार्य यदि उन विद्यार्थयों के लिए चुनौती थे तो मेरे लिए भी उनसे अपनी इच्छानुकूल परिणाम प्राप्त करना चुनौती ही था..
और सफलता दोनों को प्राप्त हुई ा
नौंवीं, दसवीं के छात्रों का क्रियात्मकता दिखाना तो मेरे लिए संतोषजनक था ही परंतु जब मेरे निर्देशों का पालन करते हुए मेरी कक्षा यानि सातवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने “रचना” और “उत्पत्ति” नामक पत्रिका की रचना की तो मुझे इतनी प्रसन्नता हुई कि मैं अपनी उस अनुभूति का शब्दों में वर्णन नही कर सकती….अपनी इस कृति मे इन छात्रों ने जान डालने हेतु सभी अध्यापकों की राय ली……
एक पत्रिका मे किन-किन विषयों पर चर्चा होनी चाहिए उन सबका ध्यान रखा..

उन छात्रों की कृतियाँ देखकर हमें ज्ञात हुआ कि हमारे देश के ये नन्हे भविष्य सही मार्गदर्शन मिलने पर कितना आगे तक सोच सकते हैं…

उन नन्हे विद्यार्थियों की इस उत्पत्ति को मैं एक प्रकाशित पुस्तक का रूप देना चाहती थी परंतु मैं ऐसा कर न सकी, पर मैं आज इस बात से प्रसन्न हूँ कि उन बच्चों की ये रचनाएँ उनकी याद बनकर हमेशा मेरे साथ रहेंगी….
और मेरा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ है, मैं चाहूँगी कि ये बच्चे भविष्य मे भी सदैव इसी तरह अनुशासित और मर्यादित रहें तथा अपने माता-पिता, गुरु और देश को गौरवान्वित करें….
कोमल गगन, वैशाली, चित्रा, शना,राशि,सौरभ, शुभम, अभिषेक, आदित्य आदि को स्मरण करते हुए……

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज के आधुनिक समय मे शिक्षा इतनी जटिल हो गई है कि शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के अध्ययन और अध्यापन प्रणाली मे काफी परिवर्तन और जटिलताएँ आई हैं ऐसे मे आदर्श विद्यार्थी मेरी एक सोच है जो मेरे अनुभव पर आधारित है....

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  2. आज के आधुनिक समय मे शिक्षा इतनी जटिल हो गई है कि शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के अध्ययन और अध्यापन प्रणाली मे काफी परिवर्तन और जटिलताएँ आई हैं ऐसे मे आदर्श विद्यार्थी मेरी एक सोच है जो मेरे अनुभव पर आधारित है....

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  3. अध्यापन प्रणाली मे काफी परिवर्तन आ चूका है

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    1. क्षमा प्रार्थी हूँ, पता नहीं क्यों मैने आपकी ये टिप्पणी आज ही देखी

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