भारतीय किसान.
भारत हमेशा से कृषि-प्रधान देश रहा है, एक समय था जब किसान होना गर्व का विषय माना जाता था परंतु आज के समय मे किसान मतलब 'पिछड़ा हुआ व्यक्ति' ा जबकि भारत आज भी कृषि प्रधान देश है फिर प्रधानता रखने वाला वर्ग इतना पीछे कैसे रह गया? यदि इस तथ्य पर विचार किया जाए तो एक ही कारण सामने आता है 'अशिक्षा' ! भारत में किसानों का बहुत बड़ा वर्ग आज भी शिक्षा से महरूम है,जिसके कारण वह खेती के आधुनिक तरीकों से भी अनभिज्ञ है और पुराने तरीके से खेती करने के कारण वह मुश्किल से अपने भरण-पोषण लायक अनाज पैदा कर पाता है, इसे अपना रोजगार नहीं बना पाया... जिसके कारण समाज मे पीछे रह गया ा
समय-समय पर सरकारों द्वारा भी किसानों के उत्थान हेतु तरह-तरह के कदम उठाए जाते रहे हैं परंतु उनमें से कुछ तो पर्याप्त नहीं और कुुछ तो सिर्फ अपनी राजनीति को चमकाने हेतु उठाए गए ा जो किसान शहरों के बड़े-बड़े उद्योगपतियों का भरण-पोषण करता है वही किसान कभी-कभी अपने ही भरण-पोषण के लिए असक्षम हो जाता है ा
इतिहास गवाह रहा है कि साधारण किसान साहूकारों, जमींदारों द्वारा तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता था, फिर भी वह जीवन से निराश नही होता था, बाधाओं और मुश्किलों से लड़ना तो उसके जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है, जमीदारों और साहूकारों की प्रताड़ना समाप्त होने के बाद भी किसान अब तक अपनी परिस्थितियों से जूझता आ रहा है... परंतु परिस्थितियों से हार मानकर अपनी जिम्मेदारियों से भागना उसका स्वभाव नही है ा
आजकल किसान आत्महत्या करने लगा है..., सदा परिस्थितियों से लड़ने वाला किसान इतना कमजोर कैसे हो गया? निःसंदेह आज राजनीति के चलते उसकी मानसिकता पर वार होता है, उसे बेचारेपन का अहसास करवाया जाता है, लोग उसे हथियार बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, उनकी राजनीति के चलते किसान स्वयं को लाचार और बेसहारा महसूस करते हुए इनके स्वार्थपरता का शिकार बन जाता है और जीवन से हार मान स्वयं के साथ घात कर बैठता है....उसे क्या पता कि उसके मरणोपरांत यही समाज के ठेकेदार उसकी मृत्यु को हथियार बना कर अपनी राजनीति का पलड़ा भारी करेंगे ा
आज सबसे अधिक आवश्यकता है किसानों को शिक्षित और जागरूक होने की ताकि कोई भी उन्हें अपनी स्वार्थ साधना का शिकार न बना सके ा
भारत हमेशा से कृषि-प्रधान देश रहा है, एक समय था जब किसान होना गर्व का विषय माना जाता था परंतु आज के समय मे किसान मतलब 'पिछड़ा हुआ व्यक्ति' ा जबकि भारत आज भी कृषि प्रधान देश है फिर प्रधानता रखने वाला वर्ग इतना पीछे कैसे रह गया? यदि इस तथ्य पर विचार किया जाए तो एक ही कारण सामने आता है 'अशिक्षा' ! भारत में किसानों का बहुत बड़ा वर्ग आज भी शिक्षा से महरूम है,जिसके कारण वह खेती के आधुनिक तरीकों से भी अनभिज्ञ है और पुराने तरीके से खेती करने के कारण वह मुश्किल से अपने भरण-पोषण लायक अनाज पैदा कर पाता है, इसे अपना रोजगार नहीं बना पाया... जिसके कारण समाज मे पीछे रह गया ा
समय-समय पर सरकारों द्वारा भी किसानों के उत्थान हेतु तरह-तरह के कदम उठाए जाते रहे हैं परंतु उनमें से कुछ तो पर्याप्त नहीं और कुुछ तो सिर्फ अपनी राजनीति को चमकाने हेतु उठाए गए ा जो किसान शहरों के बड़े-बड़े उद्योगपतियों का भरण-पोषण करता है वही किसान कभी-कभी अपने ही भरण-पोषण के लिए असक्षम हो जाता है ा
इतिहास गवाह रहा है कि साधारण किसान साहूकारों, जमींदारों द्वारा तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता था, फिर भी वह जीवन से निराश नही होता था, बाधाओं और मुश्किलों से लड़ना तो उसके जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है, जमीदारों और साहूकारों की प्रताड़ना समाप्त होने के बाद भी किसान अब तक अपनी परिस्थितियों से जूझता आ रहा है... परंतु परिस्थितियों से हार मानकर अपनी जिम्मेदारियों से भागना उसका स्वभाव नही है ा
आजकल किसान आत्महत्या करने लगा है..., सदा परिस्थितियों से लड़ने वाला किसान इतना कमजोर कैसे हो गया? निःसंदेह आज राजनीति के चलते उसकी मानसिकता पर वार होता है, उसे बेचारेपन का अहसास करवाया जाता है, लोग उसे हथियार बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, उनकी राजनीति के चलते किसान स्वयं को लाचार और बेसहारा महसूस करते हुए इनके स्वार्थपरता का शिकार बन जाता है और जीवन से हार मान स्वयं के साथ घात कर बैठता है....उसे क्या पता कि उसके मरणोपरांत यही समाज के ठेकेदार उसकी मृत्यु को हथियार बना कर अपनी राजनीति का पलड़ा भारी करेंगे ा
आज सबसे अधिक आवश्यकता है किसानों को शिक्षित और जागरूक होने की ताकि कोई भी उन्हें अपनी स्वार्थ साधना का शिकार न बना सके ा
भारतीय किसान शुरू से ही भारत का एक अभिन्न अंग रहा है, आज वही किसान जो पूरे देश का भरण-पोषण करता है वही आत्महत्या करने पर विवश है, यदि विचार किया जाए तो राजनीति इसका एक कारण हो सकता है इन्ही तथ्यों को प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास है यह लेख.. भारतीय किसान........
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