तन्हाई की गहराई तक
पाया खुद को तन्हा मैंने...
चलोगे तुम साथ मेरे
थाम हाथों में हाथ मेरे...
देखा था ये सपना मैंने|
पर सपना था वो....सिर्फ सपना
होता है ये कब किसी का अपना?
कुछ पल का जीवन दे जाता है
अकेलेपन से दामन छुड़ा जाता है
पर जब टूटता है.....
तो तन्हाई की इन्तहाँ तक
अकेलेपन के अथाह सागर में
डूबने के लिए....
अकेला छोड़ जाता है
तन्हाई की गहराई में
फिर......
पाया खुद को तन्हा मैंने...
साभार....मालती मिश्रा
Thanks for sharing such a excellent line
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