भोर हुई जब कलियाँ चटकीं
डाली पर चिड़ियाँ चहकीं,
पत्तों ने खिड़की खटकाया
मैं समझी कोई अपना आया।
चंदा भी थककर सफर से
अंबर की आगोश समाया,
संगी साथी तारक जुगनू
सबको मीठी नींद सुलाया।
दृग सुमनों के खुलने लगे
मधुपों ने गाकर उन्हें जगाया,
चहुँदिशि में सौरभ बिखराने
पवन भी गतिमय हो आया।
संध्या को गए सब भोर को आए
दिनकर ने स्वर्ण कलश बिखराए,
पशु-पक्षी सब खुशियों में झूमें
नवल-सरस सुर में मिल गाएँ।
रजत रश्मियाँ पकड़ के झूले
मुरझाए सूरजमुखी फूले,
अभिनंदन करने दिनेश का
पथ में पाटल पुष्प बिछाए।
मिलन को आतुर खोल कपाट
इत-उत निरखूँ बाट मैं जोहूँ,
दूर डगर धुँधलाने लगे सब
नयनों में तेरा रूप समाया।
छायी गहन विरहा की उदासी
बैठ झरोखे मैं बाट जोहती,
और तो काहू से बोल न पाऊँ
चिड़ियाँ बाँचें मेरे मन की पाती।
मालती मिश्रा
चित्र साभार..गूगल
चित्र साभार..गूगल
वाह !!
जवाब देंहटाएंचिडिया वाचे मन की पाती.....
बहुत ही सुन्दर लाजवाब प्रस्तुति..।
बहुत-बहुत आभार सुधा जी।
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