रविवार

अधूरा न्याय

आज सब गर्वित हो कहते हैं
निर्भया को न्याय मिल ही गया,
कुछ लोगों की नजरों में
हमारा कानून फिर महान बन गया।
पर पूछे कोई उस बिलखती आत्मा से
क्या उसको तृप्ति मिल पाई,
अपने अंगों को क्षत-विक्षत कर भी
अपनी अस्मत को बचा नहीं पाई।
या आज भी वह भटक रही है
उस वहशी नराधम के पीछे,
जिसे वह कानून संरक्षण दे रहा
जो उस रात था आँखें मीचे।
उसने उसकी नाजुक काया ही नहीं
आत्मा भी घायल कर डाला था,
अपने भीतर की हैवानियत को
उसने उस घड़ी दिखा डाला था।
क्रूरतम कोई राक्षस भी न होगा
जितना वह मानव रूप हुआ,
और हमारे कानून के समक्ष
वह नाबालिग मासूम हुआ।
एक माँ ने अपनी लाडली को
कितने अरमानों से पाला था,
अपने ममता के आँचल को
उसने झूला बना डाला था।
उसके आँचल को तार-तार किया
कैसे वह नाबालिग हुआ,
जिस कामवशी नराधम मानव ने
एक मासूम का जीवन छीन लिया।
एक माँ की गोद सूना किया
पिता की आँखें बेनूर किया,
भाई की कलाई सूनी करके
जीवन भर का पश्चाताप दिया।
उस पापी को बालक बताने वाला
कानून भी उतना ही दोषी है,
समाज में उसे जीवन देने वाले
भेड़िये अपराध के पोषी हैं।
निर्भया की आँखों से बहते लहू
तब तक नही तृप्त होंगे,
जब तक नीच अफरोज के
अंग-अंग कटकर न विक्षिप्त होंगे।
गर कानून इसे सजा दे न सके
तो फिर भाइयों को जगना होगा,
इस वहशी के कृत्यों के लिए
निर्भया के न्याय को चुनना होगा।
नारी की मर्यादा याद रहे
जन-जन में ये भाव भरना होगा,
कानून ने किया जो न्याय अधूरा
उस न्याय को पूरा करना होगा।।
मालती मिश्रा



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-05-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2630 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    उत्तर
    1. गिलबाग विर्क जी बहुत-बहुत आभार

      हटाएं
  2. प्रभावी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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