रविवार

नारी तू खुद को क्यों इतना दुर्बल पाती है, क्यों अपनी हार का जिम्मेदार तू औरों को ठहराती है। महापराक्रमी रावण भी जिसके समक्ष लाचार हुआ, धर्मराज यमराज ने भी अपना हथियार डाल दिया। वही सीता सावित्री बनकर तू जग में गौरव पाती है, पर क्यों इनके पक्ष को तू सदा कमजोर दिखाती है। माना...

शुक्रवार

विकास की दौड़ में पहचान खोते गाँव

विकास की दौड़ में पहचान खोते गाँव
वही गाँव है वही सब अपने हैं पर मन फिर भी बेचैन है। आजकल जिधर देखो बस विकास की चर्चा होती है। हर कोई विकास चाहता है, पर इस विकास की चाह में क्या कुछ पीछे छूट गया ये शायद ही किसी को नजर आता हो। या शायद कोई पीछे मुड़ कर देखना ही नहीं चाहता। पर जो इस विकास की दौड़ में भी दिल...

यादों की दीवारों पर

यादों की दीवारों पर
यादों की दीवारों पर लिखी वो अनकही सी कहानी जिसे न जाने कहाँ छोड़ आई ये जवानी कच्चे-पक्के मकानों के झुरमुटों में खोया सा बचपन यादों के खंडहरों में दबा सोया-सा बचपन न जाने कब खो गई दुनिया की भीड़ में वो गाती गुनगुनाती संगीत सी सुहानी यादों की दीवारों..... मकानों के झुरमुटों...

रविवार

राजनीतिक मानवाधिकार

राजनीतिक मानवाधिकार
'मानवाधिकार' यह शब्द सुनने में पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है पर जब यही शब्द हमारे हितों के मार्ग को अवरुद्ध करने लगे तो इसकी सारी मिठास कड़वाहट में तब्दील हो जाती। आजकल 'मानवाधिकार 'सहिष्णुता-असहिष्णुता' जैसे शब्द सिर्फ़ वोट-बैंक के लिए प्रयोग किए जाते हैं। अधिकार चाहे व्यक्तिगत...