रविवार

राजनीतिक मानवाधिकार

'मानवाधिकार' यह शब्द सुनने में पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है पर जब यही शब्द हमारे हितों के मार्ग को अवरुद्ध करने लगे तो इसकी सारी मिठास कड़वाहट में तब्दील हो जाती। आजकल 'मानवाधिकार 'सहिष्णुता-असहिष्णुता' जैसे शब्द सिर्फ़ वोट-बैंक के लिए प्रयोग किए जाते हैं। अधिकार चाहे व्यक्तिगत हो या सामाजिक यदि पूर्णतया बंधनमुक्त या पूर्णतः बंधन में बँधा हुआ हो तो समाज और देश दोनों के लिए घातक होता है। समाज में जब तक सभी अधिकार सबके लिए समान नहीं होंगे तब तक विकास का सपना अधूरा ही रहेगा।
हमारे देश में तो दशकों से तुष्टिकरण की भयंकर बीमारी ने इसप्रकार अपने पैर जमा लिए हैं कि स्वयं को समाज का ठेकेदार समझने वालों को अधिकार भी सिर्फ उनके ही नजर आते हैं जिनसे उनको अपना स्वार्थ सिद्ध होता हुआ नजर आता हो। मानवाधिकार जैसे शब्दों का प्रयोग भी वर्गविशेष के लिए होता है।

यदि अतीत में झाँकें तो कुछ साल पहले तक दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का मुख्य त्योहार हुआ करता था और आज हर वर्ष दुर्गा पूजा के लिए वहाँ के नागरिकों को संघर्ष करना पड़ता है। आज वहाँ का मुख्य त्योहार मुहर्रम है। क्या ये मानवाधिकार का हनन नहीं?
मानवाधिकार सभी मानव मात्र के लिए होता है किसी हिन्दू या मुसलमान के लिए नहीं फिरभी हमारे देश के नेताओं को एक अखलाक की हत्या तो दिखाई पड़ती है परंतु पश्चिम बंगाल में मरते बेघर होते सैकड़ों हजारों हिन्दू नहीं।
दुर्गापूजा के समय हिन्दुओं को पंडाल खड़े करने से रोका जाता है और दर्जनों घटनाओं में दुर्गा पूजा विसर्जन यात्राओं पर हमले होते हैं। इस वर्ष भी दुर्गा पूजा पर राज्य सरकार द्वारा ही व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास किया गया।

अनेक ग्रामों में, हिन्दुओं की सम्पत्ति को नष्ट किये जाने, महिलाओं के उत्पीड़न, मंदिरों तथा मूर्तियों को भ्रष्ट करने की घटनाओं आदि के परिणामस्वरूप हिन्दू समाज इन क्षेत्रों से पलायन करने को विवश हो रहा है, ऐसी ही एक घिनौनी घटना में, पिछले वर्ष 10 अक्तूबर को नदिया जिले के हंसकाली थाना अंतर्गत दक्षिण गांजापारा क्षेत्र में एक दलित नाबालिग बालिका मऊ रजक पर उसके घर में ही हमला करके उसकी हत्या कर दी गई।

तमिलनाडु, केरल एवं कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में रा. स्व. सेवक संघ, विहिप, भाजपा एवं हिन्दू मुन्नानी के अनेक कार्यकर्ताओं पर आक्रमण हुए हैं। कुछ स्थानों पर संघ कार्यकर्ताओं की हत्या, करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति का विनाश एवं हिन्दू महिलाओं पर अत्याचार हुए हैं, कर्नाटक में एक संघ स्वयंसेवक की व्यस्त सड़क पर दिनदहाड़े हत्या, कर्नाटक में बंगलूरू के अलावा मुडबिदरी, कोडागु एवं मैसूर में जेहादी तत्वों द्वारा कई हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हुई हैं।

जिस देश में एक मुस्लिम की हत्या पर विश्व स्तर पर हाहाकार मच जाता है उसी देश में सैकड़ों-हजारों की संख्या में मरते हुए हिन्दुओं को न अंधी मीडिया देख पाती और न ही मानवाधिकार का रोना रोने वाले तथाकथित समाज के ठेकेदार नेता।
रोहिंग्या मुसलमानों का पक्ष लेती जो पार्टियाँ भी मानवाधिकार का खोल लेकर खड़ी हैं वो रोहिंग्या के द्वारा किए गए हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार को न ही देख रहीं और न देखना चाहतीं, उन्हें कैराना और कश्मीर से विस्थापित होते हुए हिन्दुओं का न तो दर्द दिखाई दिया न अधिकार। जिस प्रकार ये मानवभक्षी रोहिंग्या के मानवाधिकार के लिए लड़ रहे हैं, उसी प्रकार हिन्दुओं के अधिकारों के लिए भी लड़ते तो देश में समानाधिकार कायम हो पाता। पर इस प्रकार के दोहरे रवैये ने तो सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हिन्दुओं का मानवाधिकार नहीं होता या वो मानव की श्रेणी में ही नहीं आते। क्यों हमारे देश में कानून के द्वारा भी पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जाता है? हिन्दुओं के सभी अधिकार संविधान के अनुसार और मुस्लिम के अधिकार उनकी शरिया के अनुसार... जो देश पर फिर से राज करने का सपना देख रहे हैं वो भी देश के विकास के विषय में सोचने की बजाय मात्र एक वर्ग के तुष्टिकरण के विषय में सोचते हैं।
मालती मिश्रा

4 टिप्‍पणियां:

  1. यह लेख निश्चय ही कुछ तथ्यों पर विचार करने को विवश करता है.फिर भी ये सहिष्णुता और असहिष्णुता की सारी बहस छद्म बुद्धिजीवियों की आभासी दुनिया में ही है. वास्तविक धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है. इस देश को कट्टर दक्षिण और वाम पंथ को छोड़ अपने मौलिक भारत पंथ पर आ जाना चाहिए. हमारी दार्शनिक, सांस्कृतिक और वैचारिक परम्परा इतनी सनातन और व्यापक है कि हम किसी दूसरे 'पंथ' के मुहताज नहीं. हाँ सेकुलरिज्म का ये बौद्धिक दोमुंहापन नहीं चलेगा.पंथ पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर हमें किसी भी गलत चीज की भर्त्सना करनी चाहिए. आपकी इस बात से मै सहमत हूँ कि एक देश एक कानून होना चाहिए, कोई भी धर्म क्यों न हो. न तो मनु का कानून हो और न शरियत की. हाँ अच्छी चीजे सबकी लें और बुरी चीजो का तिरस्कार करे. तथाकथित सेक्युलर खेमे का दोमुंहापन ही देश में कट्टरता फैला रहा है. विचारपरक लेख लिखने के लिए बधाई!!!

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    1. विश्व मोहन जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है, हौसलाअफजाई और गहन चिंतन से परिपूर्ण विचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत आभार।

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  2. वाह्ह्ह....मालती जी सुंदर लेख,आपकी बातों से पूर्णतया सहमत है हम।दोमुंहापन हमारे राष्ट्र के विकास में बाधक है।इसी तुष्टिकरण की नीति की वजह से ही आज अल्पसंख्यक कहे जाने वाले तथाकथित समुदाय हर छोटी घटना को बड़ा मुद्दा बना देते है।
    बहुत सुंदर लेख मालती जी।

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