बुधवार


'कुछ हकीकत कुछ फलसफे'
नवोदित कवि श्री मनीष सिंह और उनके दो अन्य सहयोगी मित्रों द्वारा रचित ऐसी पुस्तक है जिसे पढ़ने बैठो तो मन करता है कि पूरी समाप्त किए बगैर न छोड़ें। वैसे तो मनीष सिंह जी पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं परंतु उनकी कविताओं को पढ़कर साहित्य में उनकी गहन रुचि का परिचय मिलता है, उनकी रचनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि वह श्रृंगार रस के मंझे हुए कवि हों।
कवि की सबसे प्यारी कल्पना
चित्रकार की सबसे बड़ी रचना
कभी सबसे अच्छा ख्वाब
और कभी सबसे प्यारी हकीकत हो तुम।
तथा..
नजर तेरे चेहरे से हटती नहीं है
लगी है लगन अब तो मिटती नहीं है
खयालों से तेरे महकती सुबह है
मगर शाम भारी है कटती नहीं है।
जहाँ संयोग की ऐसी कई अत्यंत मधुर पंक्तियाँ हैं वहीं वियोग के पारावार की भी कमी नहीं, परंतु संयोग हो या वियोग दोनों ही परिस्थितियों में इन्होंने काव्य सौंदर्य को बनाए रखते हुए 'गेयता' के गुणों को नहीं छोड़ा।
जो दिन के उजाले में न मिला,
दिल ढूँढ़े ऐसे सपने को।
इस रात की जगमग में डूबा,
मैं ढूँढ़ रहा हूँ अपने को।
वैसे तो मनीष जी के ही लफ़्जों में यह उनकी पहली पुस्तक है परंतु ऐसा लगता है जैसे उन्होंने न जाने कितनी रचनाओं के सागर से चुनकर मोती निकाले हैं। उनकी कविताएँ बेशक छांदिक नहीं परंतु छंदमुक्त कविताओं का सुंदर उदाहरण हैं। कविताएँ पढ़ते हुए अनायास लयबद्ध हो जाती हैं ऐसी गेयता है इनमें-
अब तक हम थे चुप बैठे,
अब दिल ने भी इकरार किया
जब से दिल ने तुमको जाना,
तबसे तुम को प्यार किया....
इस तरह की और भी कई कविताएँ हैं जिन्हें होठ अनायास ही गुनगुनाने लगें।
इनकी कविताएँ जहाँ एक ओर हमसफर के रंगीन सपनों से सजी हैं वहीं इन्होंने जीवन को लेकर सकारात्मक सोच को भी अपनी रचनाओं के द्वारा दर्शाया है-
राहों में पड़े काँटे तो क्या
मंजिल पाने की आस तो है,
कल का सूरज अपना होगा
मन में ये विश्वास तो है।
इसी तरह की अन्य पंक्तियाँ
न होगी भूख न सूखा होगा,
चहुँओर होगी हरियाली। जैसी पंक्तियों में सुनहरे भविष्य की कल्पना भी की है। रुपहले ख्वाबों से सजी रचनाओं के रचयिता होने के साथ-साथ 'नेताजी का इंटरव्यू' 'कंप्यूटराइज्ड प्रेम पत्र' जैसी कविताओं से उनके हास्य पक्ष का भी परिचय मिलता है। वहीं 'मेरा हिंदुस्तान कहाँ है' 'मजदूर की व्यथा' तथा इसी प्रकार  की कई अन्य सुंदर रचनाओं के द्वारा समाज और देश के प्रति अपने चिंतन-मनन का भी परिचय दिया है।
तीनो कवियों ने मिलकर इस पुस्तक को बड़ी ही सुंदरता से विभिन्न कविता रूपी पुष्पों से सजाया है 'गुजरा दिन' के माध्यम से जीवन की व्यस्तता में उपेक्षित दिन का मानवीकरण करके बड़ी ही सुंदरता से अंकित किया है इसी प्रकार रोजमर्रा के अनुभवों का भी सजीव चित्रण किया है। मैं ये नहीं कहती कि इनकी रचनाएँ काव्यगत गुणों से परिपूर्ण हैं, निःसंदेह इनमें भी शैलीगत दोष उपलब्ध हो सकते हैं परंतु काव्य की विशेषता होती है कि बड़ी ही सहजता से कम शब्दों में अपनी बात पाठक तक पहुँचा दे और अपनी सरलता और सहजता से मानव मन के तारों को झंकृत कर दे और इस काव्य संग्रह की कविताओं में ये गुण विद्यमान है।
इनकी कविताएँ सहज ही मन को भाती हैं तथा इन्हें पढ़ते वक्त पंक्तियों में वर्णित छवि मस्तिष्क में साकार होने लगती है। इनकी कविताएँ महज कोरी कल्पना नहीं लगती बल्कि हर एक पंक्ति को मानो जिया हो और फिर अपने अनुभवों को शब्दों का रूप दे दिया। एक जगह यह कहते भी हैं कि
"निकला हूँ बेचने को बाज़ार में,
यादों को तुम्हारी लफ़्ज़ों में लिखकर।
खरीदार भी कई हैं पर न जाने,
यादें बिकती नहीं और न चैन मिला कहीं।"

कुल मिलाकर कविताओं की सरलता, उनका माधुर्य, उनका रस और उनकी गेयता उनके शिल्पगत कमियों को महसूस भी नहीं होने देते। मैं समझती हूँ कि न सिर्फ काव्य प्रेमी बल्कि हिन्दी साहित्य की किसी भी विधा में रुचि रखने वालों को एक बार अवश्य इसे पढ़ना चाहिए।
और अन्त में मनीष जी व उनके सहयोगी मित्रों की इस कृति के लिए शुभेच्छा के साथ उन्हीं की पंक्ति से समापन करूँगी कि
"रोज सुबह जो पढ़ी जाए वो किताब हो तुम
लफ्जों में बयाँ हो न सके ऐसा एक अहसास हो तुम।"
#मालतीमिश्रा

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