गुरुवार

पुरस्कार

पुरस्कार
पुरस्कार...... कहीं दूर से कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ रही थीं, नंदिनी ने सिर को तकिए से थोड़ा ऊँचा उठाकर खिड़की से बाहर की ओर देखा तो साफ नीले आसमान में दूर-दूर छिटके हुए इक्का-दुक्का से तारे नजर आ रहे थे। चाँद तो कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था, दूर बहुमंजिला...

शुक्रवार

माँ बिन मायका

माँ बिन मायका
माँ बिन मायका वही बरामदा है और बरामदे में बिछा हुआ तख्त भी वही है, जो आज से कई साल पहले भी हुआ करता था और उस पर बैठी देविका आज भी अपने मायके से ससुराल जाने को तैयार बैठी थी पर आज यहाँ के दृश्य के साथ-साथ रिश्ते, रिश्तेदार, भावनाएँ और सोच सब बदल चुके थे। दो साल पहले जब...