इत-उत हर सूँ देखो तो
गिद्ध ही गिद्ध अब घूम रहे
किसी की चुनरी किसी का पल्लू
चौराहों पर खींच रहे
मरे हुए पशु खाते थे जो
अब जीवित मानव पर टूट रहे
नजरें बदलीं नजरिया बदला
हर शय में गंदगी ढूँढ़ रहे
अपनी नीयत की कालिमा
दूजे तन पर पोत रहे
मर चुकी है जिनमें मानवता
वो हर अक्श में नग्नता देख रहे
माता-भगिनी मान हर नारी को
जहाँ शीश नवाया जाता था
हर गली हर मोड़ पर अब
बैठे उनको ही ताड़ रहे
नारी को देवी के समकक्ष
जिस देश में पूजा जाता था
उस देश के चौराहों पर अब
उसके वस्त्रों को फाड़ रहे
आज के मानव को देख-देख
पशुता भी घबराती है
इतनी गंदगी और नीचता
मानव जाति कहाँ से लाती है
नारी का मान जिसे बर्दाश्त नहीं
यह उसकी मानसिक बीमारी है
मान घटाने को नारी का
अपना चरित्र और मानवता हारी है।
सीता की लाज बचाने वाला
गिद्ध न जाने कहाँ खो गया
जाते-जाते अपनी दृष्टि
इस युग के रावण को दे गया
मालती मिश्रा
रचना को को शामिल करने और ब्लॉग पर पधार कर सूचित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंरचना को को शामिल करने और ब्लॉग पर पधार कर सूचित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंसीता की लाज बचाने वाला
जवाब देंहटाएंगिद्ध न जाने कहाँ खो गया
जाते-जाते अपनी दृष्टि
इस युग के रावण को दे गया
बहुत प्रभावी कविता, सुंदर प्रस्तुति मालती जी .
राकेश कुमार श्रीवास्तव जी बहुत-बहुत आभार।
हटाएंकड़वा सच ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील कुमार जी।
हटाएंधन्यवाद सुशील कुमार जी।
हटाएंबहुत सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
सावन कुमार जी बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंसुन्दर चित्र रचना
जवाब देंहटाएंबधाई। मालती जी!
हौसला आफ़जाई के लिए बहुत-बहुत आभार सुधा जी।
हटाएंहौसला आफ़जाई के लिए बहुत-बहुत आभार सुधा जी।
हटाएंसभ्यता की सीढियां चढ़ता समाज आज जिस विकृति से दो चार है उसका खूबसूरत चित्रण करती मार्मिक प्रस्तुति। बधाई!
जवाब देंहटाएंरवींद्र सिंह जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार। ब्लॉग पर स्वागत है आपका।
हटाएंरवींद्र सिंह जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार। ब्लॉग पर स्वागत है आपका।
हटाएंअद्भुत लेखन .. मालती जी :)
जवाब देंहटाएंअनुराधा
बहुत-बहुत आभार अनुराधा शर्मा जी। ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हटाएंबहुत-बहुत आभार अनुराधा शर्मा जी। ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हटाएंye rawan nhi ye koi nayi prajati hai .. inka sanhaar kaise ho ? umda rachna
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है सुनीता जी।
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है सुनीता जी।
हटाएंमालती मिश्रा की कविता में ओज है किन्तु प्रवाह नहीं है. ऐसा लग रहा है कि हम कविता नहीं बल्कि नारी-मुक्ति आन्दोलन के किसी नेता का उबाऊ भाषण पढ़ रहे हों.
जवाब देंहटाएंस्वागत है गोपेश जी आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का, मैं नहीं कहती कि मुझे कविता लिखना आता है ये तो मेरे मन के उद्गार हैं जिन्हें मैंने शब्द दे दिए। परंतु मुझे सीखने में रुचि है मैं चाहती हूँ मेरे इन्हीं शब्दों को काव्यात्मक रूप देकर प्रवाहमयी कविता बनाकर मुझे भी बताने की कृपा करें चाहे कुछ पंक्तियाँ ही सही। आशा थोड़ा ज्ञान बाँटने में आपको कोई कष्ट न होगा। आगे भी आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियों का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंस्वागत है गोपेश जी आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का, मैं नहीं कहती कि मुझे कविता लिखना आता है ये तो मेरे मन के उद्गार हैं जिन्हें मैंने शब्द दे दिए। परंतु मुझे सीखने में रुचि है मैं चाहती हूँ मेरे इन्हीं शब्दों को काव्यात्मक रूप देकर प्रवाहमयी कविता बनाकर मुझे भी बताने की कृपा करें चाहे कुछ पंक्तियाँ ही सही। आशा थोड़ा ज्ञान बाँटने में आपको कोई कष्ट न होगा। आगे भी आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियों का स्वागत है।
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