गांधारी की तरह
आँखों पर पट्टी बाँध लेना ही
समाधान होता अगर
विनाश लीला से बचने का
तो द्रौपदी भी बाँध पट्टी
बच जाती
चीर हरण के अपमान से
न रची जाती
महाभारत की विनाश लीला
बाँध पट्टी आँखों पर
गाँधारी बचा लेती
अपने शत पुत्रों का जीवन,
गाँधारी बन जाना ही
अगर समाधान होता
हर समस्या का
तो न रचा जाता कोई
लाक्षागृह
न रचना होती चक्रव्यूह की
असमय अभिमन्यु न मारा जाता
न होती उत्तरा की कोख
विदीर्ण,
गाँधारी सम आँखों पर
पट्टी बाँध लेना ही
यदि समाधान होता
हर समस्या का तो
महिला उत्पीड़न के
नित नए कारनामे न होते
बाँध पट्टी आँखों पर
नजरिया बदल देते
बन जाते सब गाँधारी
स्त्री असुरक्षित न होती कहीं
गाँधारी बन जाने से
समाज होता स्वच्छ और निर्मल
तो अक्सर अखबारों के पन्नों पर
नई निर्भया न जन्म लेतीं
राह चलती लड़कियाँ
न छेड़ी जातीं
छोटी-छोटी मासूम
कन्याओं के हाथों से
खेल-खिलौने छीनकर
उन्हें घर के भीतर रहने
को मजबूर न किया जाता
गाँधारी के समान
आँखों पर पट्टी बाँध लेना ही
अगर समाधान होता समस्याओं का
तो श्री राम को
चौदह वर्षों का वनवास नहीं होता
जगजननी माँ
सीता का अपहरण नही होता
गाँधारी की तरह आँखों पर
पट्टी बाँधना ही गर समाधान होता
हर समस्या का तो
हमारा देश कभी गुलाम नहीं होता
असमय अपने अगणित
वीर सपूतों को नहीं खोता
गाँधारी के समान आँखों पर
पट्टी बाँध लेना ही
अगर समाधान होता
हर समस्या का
तो आज इस देश के
हर राज्य, हर नगर के
हर गली हर कूचे के
हर घर में
कम से कम एक गाँधारी
नजर आती
अपने घर को धृतराष्ट्र की
अंधता से बचाने को,
अपने घर को
हर बुरी नजर, हर विनाश की
परछाई से बचाने को,
यदि यही समाधान होता
हर समस्या का तो
आज तैयार होती हर स्त्री
गाँधारी बन जाने को।
समय बदल रहा है
गाँधारी के आँखों की पट्टी
न तब सही थी
न अब सही है
आज बदले समय की माँग है...
गाँधारी को अपनी पट्टी खोल
धृतराष्ट्र की बुद्धि पर
बँधी लालच की पट्टी को
नोचकर फेंकना होगा
द्युत क्रीड़ा में रमे हाथों को
बेड़ियों में जकड़ना होगा
द्रौपदी की लाज बचाने
आज कृष्ण नहीं आने वाले
अपने मान की रक्षा इसको
आज स्वयं ही करना होगा
चीर के सीना दुशासन का
रक्तपान इसे करना होगा
दुर्योधन की जंघा तोड़ने को
भीम नहीं आने वाले
उसकी जंघा तोड़ इसे
तांडव स्वयं मचाना होगा
अपने अस्तित्व का परिचय इसको
आज स्वयं कराना होगा
पुष्प सजाने वाले केशों को
रक्त स्नान कराना होगा
चूड़ियाँ सजने वाली कलाइयों की
शक्ति इसे दिखलानी होगी
मेंहदी वाले हाथों में
फिर तलवार सजानी होगी
जिन पैरों के पायल की रुनझुन
संगीत बन मन हरते थे
उन पैरों के आहट की गूँज से
उनका हृदय दहलाना होगा
जिस मीठी बोली को दुनिया ने
समझा नारी की कमजोरी
उस बोली की मिठास छोड़
अब दहाड़ उन्हें सुनाना होगा।
आँखों पर पट्टी को बाँधने के
तेरे त्याग को जग न समझेगा
तेरी महानता दुनिया के लिए
त्याग नहीं लाचारी है
उतार पट्टी आँखों की
तू अपनी शक्ति को पहचान
कमजोर नहीं
तू शक्तिस्वरूपा है
तू जग की सिरजनहारी है
नारी किसी अन्य से नहीं
हर युग में
हर रण में
तू सिर्फ स्वयं से हारी है।
तू सिर्फ स्वयं से हारी है।।
मालती मिश्रा
आज़ कृष्ण नहीं आने वाले
जवाब देंहटाएंअपने मान की रक्षा...
बहुत बढिया हर वाक्य में गहन भाव और कथ्य।
बहुत-बहुत आभार पम्मी जी
हटाएंबहुत-बहुत आभार पम्मी जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 20 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरचना को इस योग्य समझने और सूचित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंरचना को इस योग्य समझने और सूचित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंआखें खोलती हुई कविता............
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
ब्लॉग पर आने और अपनी टिप्पणी से मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत आभार सावन कुमार जी
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हटाएंअति सुंदर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत आभार आप पी गुप्ता जी।
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हटाएंअति सुंदर प्रस्तुती
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