कब से था इंतजार मुझे
सावन तेरे आने का,
अखियाँ तकती पथराने लगीं
खुशियों को देख पाने को।
नव पल्लवित कोपलों को देखे
ऐसा लगता सदियाँ बीतीं,
ताल पोखर नदियाँ नहरें
सब जल बिन रीती रीतीं।
तरुवर अड़े खड़े रहे
कब तक न आओगे जलधर,
न सूखेंगे न टूटेंगे
करते रहेंगे
जीवन का उत्सर्जन।
धरती का सीना पथराने लगा
संताप भी अब गहराने लगा,
पीड़ा अपनी दर्शाने को
हृदय फाड़ दिखलाने लगी।
ताप तप्त ये हृदय धरा का
संतान कष्ट से विदीर्ण हुआ,
कैसे तुम निर्मोही हो
क्यों हृदय तुम्हारा संकीर्ण हुआ।
मौसम हो या कि मानव
सब समय की गति के मारे हैं,
समय रहते जो न चेत सके
वो सदा समय से हारे हैं।
समझा न जो गति समय की
अपना अस्तित्व गँवाया उसने,
उपरांत समय के आने पर फिर
वह सम्मान नही पाया उसने।
जिनका जीवन आश्रित था तुमपर
जो तुमको पा जी सकते थे,
असमय तुम्हारे आने पर
तुमसे मिल मुर्झाने लगे।
जब जीवन उनका
तुमपर निर्भर था
तुम अभिमान में मदमस्त रहे,
तुम बिन जीना सीख लिया जब
अब उपस्थिति तुम्हारी रहे न रहे।
समय सदा चलायमान है
इसका मोल न जाना जिसने,
समय रहते जो न संभला तो
उसका अस्तित्व मिटाया इसने।
जो तुम पर मिटने को बैठे थे
उनका तुमने परित्याग किया
गिरकर बमुश्किल संभले तो
उम्मीदों का दिखाओ न दिया।
मालती मिश्रा
समय रहते जो न संभला तो
जवाब देंहटाएंउसका अस्तित्व मिटाया इसने.....
समय का महत्व बताती बहुत सुन्दर रचना
सुधा जी बहुत-बहुत आभार ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए।
हटाएंसुधा जी बहुत-बहुत आभार ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति की लिंक 26-01-2017को चर्चा मंच पर चर्चा - 2585 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सूचित करने के लिए धन्यवाद दिलबाग विर्क जी।
हटाएंसूचित करने के लिए धन्यवाद दिलबाग विर्क जी।
हटाएंअति सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत आभार अमृता जी।
हटाएंब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत आभार अमृता जी।
हटाएंमालती जी, हमने आपके ब्लॉग को देखा और पढ़ा। बहुत अच्छी रचनाएं है। जिसके लिए आप बधाई की पात्र है और साथ ही हम आपको सूचित करना चाहते है कि आपके ब्लॉग को हमने Best Indian Blogs पर भी संग्रहित किया है।
जवाब देंहटाएं- Team iBlogger
सूचित करने के लिए धन्यवाद
हटाएंसूचित करने के लिए धन्यवाद
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