रविवार

हिंदी का दर्द

हिंदी का दर्द
हिंदी हमारी मातृभाषा है किंतु अपने ही देश मे हमारी राष्टृभाषा की जो बेकदरी हो रही है उसे देख संतानों के होते हुए वृद्धाश्रम में जीने को मजबूर माँ की दशा आँखों के समक्ष प्रत्यक्ष हो जाती है | माँ अपनी संतान को अपना दूध पिलाकर ही नही अपने खून से सींचती है किंतु संतान...

कहें मोदी सुनो भई साधो

कहें मोदी सुनो भई साधो
कहें मोदी सुनो भई साधो  सच्चाई से मुँह न मोड़  देश को अगर चमकाना है तो  चलो एक कदम स्वच्छता की ओर सम-विषम के भ्रम में पड़कर ध्यान न लगाना दुर्गुणता की ओर  देश को आगे बढ़ाना है तो  जन-जन जाने स्टार्ट-अप का जोर चलो एक कदम स्वच्छता की...

बुधवार

रामचंद्र कह गए सिया से

रामचंद्र कह गए सिया से
राम चंद्र कह गए सिया से  ऐसा कलयुग आएगा  सत्य छिपेगा घरों के भीतर  असत्य ही ढोल बजाएगा  मेहनत करने वाला मानव  हर चीज की तंगी झेलेगा  चोर और भ्रष्टाचारी  छप्पन भोग लगाएगा  झूठ के भ्रम जाल में जन-जन इस कदर फँस जाएगा सच्चाई...

सोमवार

मीरा...

मीरा...
   गाड़ी का तेज हॉर्न सुनाई पड़ा और गाड़ी पटरी पर धीरे-धीरे सरकने लगी...मामा जी नमस्ते...बच्चों ने कहा  अच्छा अपना ध्यान रखना...कहकर मामा ने हाथ हिलाया ठीक है, तुम चलो...मीरा ने कहा  गाड़ी पूरी गति से भागती जा रही थी, दूर आसमान में सूर्य देव भी विश्राम...

मंगलवार

चलो इंसान उगाते हैं...

चलो इंसान उगाते हैं...
प्रेम,सौहार्द्र के बीज रोप कर मानवता के पौध लगाते हैं  नफरत से सूखी बगिया में कुछ प्रेम के फूल खिलाते हैं चलो इंसान उगाते हैं ... विलुप्त हो चुके परमार्थ को हर इक जीव में जगाते हैं  स्वार्थ के काले पन्नो में इक उजली किरण सजाते हैं  चलो इंसान...

गुरुवार

दर्द

दर्द
दर्द क्या है कोई पूछे उससे, जो दर्द को दिल बसा बैठी| वफादारी की चरम सीमा तक, वफा को सांसों में समा बैठी| वफा बाँटा वफा चाहा, वफा के सागर में वो बहने वाली एक बूँद वफा का पा न सकी| अपने भ्रम को मिटाने की चाह में, भ्रमजाल में वो फँसती ही गई| आँखों का भ्रम है...

सोमवार

चाह

चाह
चाहा मैंने एक रोज ये, कि मैं भी एक युग रचना कर पाऊँ| जिस वसुधा पर पा जन्म प्रखर बनी, सर्वस्व निछावर उसपर कर जाऊँ| ज्ञान प्रयुक्त ज्योत्सना बन, अज्ञान अंधेरे में भी मैं, हर मार्ग प्रशस्त कर पाऊँ| बन मधुर लहरिया सुर सरिता की, जन जीवन मधुर बना पाऊँ| बन धूप शीतमय...