कितने ही घरों में अँधेरा हो गया
सूख गया फिर दीयों का तेल
उजड़ गई दुनिया उनकी
जो हँसते मुसकाते रहे थे खेल
देख कर आँसुओं का समंदर
क्या आसमाँ भी न रोया होगा
दूध से जो आँचल होता था गीला
खून से कैसे उसे भिगोया होगा
आँखों में लिए सुनहरे सपने जिसने
चौथ का चाँद...
शत-शत नमन
