रविवार

माँ

जब-जब मुझको हिंचकी आती
तब याद माँ तेरी थपकी आती
जब तपती धूप सिर पर छाई
तेरे आँचल की ठंडक याद आई
ठोकर से कदम लड़खड़ाने लगे
तेरी बाँहों के घेरे याद आने लगे
तन्हाई मुझे जो सताने लगी
तेरी लोरी मुझको सुलाने लगी
माँ कर्ज तेरा लिए चलती हूँ
तुझसे मिलने को मचलती हूँ
यूँ कहते हुए हुए दिल रोता है
अच्छा तो अब मैं चलती हूँ।
दुनिया का दस्तूर निभाने को
खुद कोखजनी को दूर किया
चाहूँ तो भी कर्ज चुका न सकूँ
दस्तूर ने मुझे मजबूर किया।
मातृदिवस की ये बधाइयाँ फिर
यादें सारी लेकर आईं
तेरी ममता तेरा वो दुलार
हृदय में हूक सी बन फिर छाई।
मालती मिश्रा

चित्र साभार...गूगल

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 15 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिग्विजय अग्रवाल जी रचना को सम्मिलित करने और सूचना देने के लिए बहुत-बहुत आभार। शुभ संध्या।

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  2. हृदयातल से धन्यवाद देता हूँ आपको।बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !

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    उत्तर
    1. ध्रुव सिंह जी बहुत-बहुत आभार आपका।

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