सोमवार

गाँवों की सादगी खो गई

गाँवों की सादगी खो गई
शहरों की इस चकाचौंध में  गाँवों की सादगी ही खो गई जगमग करते रंगीन लड़ियों में अंबर के टिमटिमाते तारे खो गए। लाउड-स्पीकर की तेज ध्वनि में अपनापन लुटाती पुकार खो गई डीजे की तेज कर्कश संगीत में ढोल और तबले की थाप खो गई। प्रतिस्पर्धा की होड़ में देखो आपस का प्रेम-सद्भाव...

शनिवार

चलता चल राही...

चलता चल राही...
जीवन की राहें हैं निष्ठुर चलना तो फिर भी है उनपर अपने कर्मों से राहों के काँटे चुन और चलता चल चलता चल राही चलता चल... मार्ग में तेरे बाधा बनकर विशाल पर्वत भटकाएँगे, कर्मयोग से प्रस्तर को पिघलाकर नदी बहाता चल चलता चल राही चलता चल... सूरज की जलती किरणें झुलसाएँगी तेरा...

गुरुवार

अधिकारों की सीमा...

अधिकारों की सीमा...
अधिकारों की सीमा.... सभी को अपनी बात रखने का अधिकार होना चाहिए पर किसी की भावना पर नहीं प्रहार होना चाहिए देश और धर्म के लिए संतुलित व्यवहार होना चाहिए अधिकारों के लिए निश्चित एक दीवार होना चाहिए एक वर्ग का संरक्षण दूसरे पर नहीं अत्याचार होना चाहिए देश के विकास...

बुधवार

✅हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सौजन्य से.......  Ek Fauji ki request per yeh forwarded msg. zaroor padhen ----------------------- कोर्ट मार्शल" ------------ आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था बिन हुक्म...

मंगलवार

पृथ्वीराज..."एक अनकही दास्तां" (संस्मरण)

पृथ्वीराज..."एक अनकही दास्तां" (संस्मरण)
'पृथ्वीराज'...."एक अनकही दास्तां" (संस्मरण) बात कोई सन् 1985-86 की है, उस दिन दोपहर से ही घर के बड़ों के व्यवहार कुछ अलग दिखाई दे रहे थे, कभी माँ दादी से धीरे-धीरे बातें करतीं और हम बच्चों को पास आते देखकर चुप हो जातीं। कभी चाची और छोटी दादी आपस में खुसर-पुसर करते दिखाई...

शनिवार

राजनीति का शिकार.."किसान"

राजनीति का शिकार..किसान
जिस प्रकार माता-पिता जीवन की हर कठिनाइयों का सामना करते हुए नाना प्रकार के मुश्किलों से बचाते हुए अपनी संतान का पालन-पोषण करते हैं, स्वयं भूखे रहकर अपनी संतान की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं उसी प्रकार किसान अपनी फसल की देखभाल, उसका पालन-पोषण करता है।...

गुरुवार

मोदी जी आप कैसे सोते हैं....

मोदी जी आप कैसे सोते हैं....
मोदी जी आप कैसे सोते हैं वैसे तो दिन के बीस घंटे आपके देश के नाम ही होते हैं फिरभी शत्रु आपके हर पल नई साजिशें रचते हैं देश के भीतर रहकर शत्रु पड़ोसी मुल्क की सरपरस्ती करते हैं हर दिन हर घड़ी आप चक्रव्यूह में घिरे होते हैं मोदी जी आप कैसे सोते हैं.. जितना...