शनिवार

चलता चल राही...


जीवन की राहें हैं निष्ठुर
चलना तो फिर भी है उनपर
अपने कर्मों से राहों के
काँटे चुन और चलता चल
चलता चल राही चलता चल...

मार्ग में तेरे बाधा बनकर
विशाल पर्वत भटकाएँगे,
कर्मयोग से प्रस्तर को
पिघलाकर नदी बहाता चल
चलता चल राही चलता चल...

सूरज की जलती किरणें
झुलसाएँगी तेरा तन-मन
अथक परिश्रम से तू राही
श्वेद के घन बरसाता चल
चलता चल राही चलता चल...

वृक्षों की शीतल छाया
पथ में ललचाएँगे तेरा मन
अपने वट की शीतलता तू
औरों के लिए लुटाता चल
चलता चल राही चलता चल...
मालती मिश्रा
चित्र- साभार... गूगल

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