शुक्रवार

फ़र्ज

फ़र्ज
चारो ओर घना अंधेरा फैल चुका था हाथ को हाध सुझाई नही दे रहे थे। ऐसे में चारों ओर भयानक सन्नाटा पसरा था। बादलों की गड़गड़ाहट से आत्मा थर्रा जाती। रह-रह कर बिजली यूँ कड़कड़ाती मानो अभी धरती पर गिर कर सब कुछ भस्म कर देगी। बूँदा-बाँदी शुरू हो चुकी थी। पगडंडी के दोनो ओर खड़े...
आज हिन्दू ही हिन्दू का शत्रु बना हुआ है कहीं ब्राह्मण तो कहीं दलित बना हुआ है, सोने वालों को जगा लें सुबह की किरण दिखाकर या रब उसे कैसे जगाएँ जिसने अक्ल का दरवाजा बंद कर लिया है। #मालतीमिश्र...

गुरुवार

अलसाए दृग खोल भानु ने पट खोला अंबर का निरख-निरख के छवि तटनी में मन मुदित हुआ दिनकर का अगुवानी दिवाधीश की करने तट पर विटप झुक आए पथ में बिछा सुरभित पंखुड़ियाँ कर मंगलगान हरषाए। #मालतीमिश्रा ...

शनिवार

मैं ढलते सूरज की लाली कुछ पल का अस्तित्व है मेरा फिर तो लंबी रात है काली सब पर एक सा प्यार लुटाकर अपने रंग में रंग दूँ धरा को पत्ता पत्ता डाली डाली मैं ढलते... जानूँ अपनी नियति का लेखा कुछ पल में मैं ढल जाऊँगी सौंदर्य बिखेरा अपनी हर शय सबके मन को मैं लुभाऊँगी नहीं...

बुधवार

दिल आखिर तू क्यों रोता है....2

दिल आखिर तू क्यों रोता है....2
दिल आखिर तू क्यों रोता है जीवन मानव का पाकर जो इस दुनिया में आते हैं जैसे कर्म करते इस जग में वैसा ही फल पाते हैं तेरे किए का क्या फल होगा ये कब किसके वश में होता है दिल आखिर तू क्यों रोता है... जीवन दिया जिस जगत पिता ने उसने संघर्ष की शक्ति भी दी कष्ट दिए गर उसने हमको...

कृत्रिम मानवता

कृत्रिम मानवता
मानव होकर यदि मानवीय गुणों से रिक्त रहे तो मानव जन्म सार्थक नहीं हो सकता। सहृदयता और समभाव इसी गुण का हिस्सा है, कुछ लोगों में ये गुण जन्मजात होते हैं तो कुछ लोगों में ज्ञानार्जन के बाद आते हैं। जिनमें जन्मजात होते हैं उनमें तो स्वाभाविक रूप से सभी प्राणीमात्र के लिए ये...

रविवार

वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा

वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा
मनुष्य हर पल हर घड़ी हर स्थान पर हर परिस्थिति में कुछ न कुछ सीखता ही है, बेशक उसे उस वक्त इसका ज्ञान न हो परंतु आवश्यकता पड़ने पर उसे अनायास ही परिस्थिति घटना समस्या और समाधान सब याद हो आते हैं और तब महसूस होता है कि हमने अमुक समय अमुक सबक सीखा था। अत: जब हम जाने-अनजाने...