विश्वगुरु बन था उभरा, अपना देश महान।
गद्दारों के स्वार्थ में, बना रहा गुमनाम।।
जीवन में जीता वही, जिसने न मानी हार।
पार हुआ तूफानों से, ले धैर्य की पतवार।।
#मालतीमिश्रा
गद्दारों के स्वार्थ में, बना रहा गुमनाम।।
जीवन में जीता वही, जिसने न मानी हार।
पार हुआ तूफानों से, ले धैर्य की पतवार।।
#मालतीमिश्रा
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
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इस लिये आप की रचना...
दिनांक 15/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
Kuldeep Thakur ji बहुत-बहुत आभार🙏
हटाएंबहुत खूब... वाह्ह्ह्ह्
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लोकेश जी🙏
हटाएंबहुत सुन्दर ...उम्दा...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुधा जी हृदयतल से आभार व्यक्त कर रही हूँ। ब्लॉग पर आपका आना मन प्रसन्नता से खिल जाता है। ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।🙏
हटाएंबहुत ही बढ़िया...विश्वगुरु की राह में कौन कौन था रोड़ा...
जवाब देंहटाएंअलकनंदा जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है, बहुत-बहुत आभार🙏 शुभ संध्या
हटाएंसुंदर पंक्तियाँ प्रिय मालती जी |सस्नेह --
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार रेनू जी, बहुत प्रसन्नता हुई आपकी प्रतिक्रिया जानकर, स्नेह बनाए रखें, शुभ संध्या🙏
हटाएंबहुत सुंदर कथन थोडे मे विशाल ।
जवाब देंहटाएंमीता आपको ब्लॉग पर देख कर मन गद्गगद् हो जाता है, आपकी उपस्थिति ही मेरे लिए प्रोत्साहन बन जाता है। शुभ संध्या मीता🙏🙏
हटाएंवाह!!बहुत सुंंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया शुभा जी। शुभ संध्या🙏🙏
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