बुधवार

बालदिवस

बालदिवस
कंधे से बस्ता उतारकर सोफे पर फेंकते हुए बंटी ने माँ को बताया कि कल विद्यालय में बालदिवस मनाया जाएगा इसलिए सब बच्चों को फैन्सी ड्रेस पहनकर आना है। "माँ मैं क्या बनकर जाऊँ?" तब माँ उसे बाजार लेकर गई ताकि उसके लिए कोई ऐसी ड्रेस खरीद सके जिसमें बंटी कल सबसे अलग सबसे सुंदर लगे। जाते-जाते अपनी नौकरानी की दस साल की बेटी गुड्डी को बंटी के कपड़े, जूते-मोजे और बस्ता जगह पर रखकर रसोई में पड़े जूठे बरतनों को साफ करने के लिए भी कहती गई। आज उसकी नौकरानी बुखार होने के कारण नहीं आई तो बंटी की माँ ने उसकी बेटी को ही बुला लिया। अगली सुबह बंटी खरगोश की सुंदर सी ड्रेस पहनकर बहुत ही सुंदर सा खरगोश लग रहा था, खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे, खरगोश की ड्रेस में वह खुद को खरगोश जैसा ही महसूस करते हुए पूरे घर में उछल-कूद कर रहा था। स्कूल में जहाँ कोई महात्मा गाँधी तो कोई झाँसी की रानी, कोई नेता जी तो कोई भगत सिंह बनकर आए थे वहीं कोई बच्चा हाथी तो कोई खरगोश बनकर। बंटी ने सबके साथ खूब मजे किए। घर आते समय रास्ते में एक छोटा सा बच्चा बंटी की माँ के आगे खड़ा हो गया, और हाथ फैलाकर बोला "कुछ खाने को दे दो भूख लगी है।"
बंटी की माँ ने उसकी ओर देखा.. मैली-कुचैली सी कमीज कंधे से फटकर लटक रही थी, मुँह और हाथ-पैर इतने गंदे मानो कई दिनों से पानी छुआ ही न हो। 'कुछ नहीं है' कहकर बंटी की माँ उससे बचकर किनारे से ऐसे निकलीं ताकि वह छू न जाए। घर पर आज भी गुड्डी सफाई कर रही थी।
"माँ ये बालदिवस क्या होता है?" बंटी ने पूछा। "बेटा बाल मतलब बच्चे और दिवस का मतलब दिन, यानि बच्चों का दिन। हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बच्चों से बहुत प्यार करते थे, बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहते थे, इसीलिए उनके जन्मदिन को बालदिवस के रूप में मनाते हैं।"
"अच्छा तो चाचा नेहरू को गरीब और गंदे दिखने वाले बच्चे अच्छे नहीं लगते थे इसलिए ये बालदिवस उनके लिए नहीं होता, है न माँ!"
माँ अवाक् निरुत्तर सी बंटी को देखने लगी।

मालती मिश्रा 'मयंती'

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !!!!!! नन्हे बंटी ने बात तो पते की कर दी | मलिनता और विपन्नता में घिरे , बचपन से ही रोटी रोजी के जुगाड़ में सहयोग करते नन्हे बच्चे क्या जाने क्या होता है बाल दिवस और नेहरु चाचा को ये भाते थे या नहीं पता नहीं पर कथित संभ्रांत वर्ग भूल जाता है कि नियति के मारों के लिए इंसानियत की एक नजर तो बचा कर रखले | पर यही
    विडम्बना है समाज की -- दीपक तले अन्धेरा | मर्मस्पर्शी लघुकथा प्रिय मालती बहन |

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    1. आपकी अनमोल टिप्पणी से मेरी लेखनी को ऊर्जा मिलती है आ० रेनू बहन, बहुत-बहुत आभार अपना कीमती समय तथा प्रतिक्रिया देने के लिए।

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  2. आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।

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  3. बच्चा का प्रश्न बिल्कुल अवाक् करने वाला है। बालदिवस उन बच्चों का भी है उनका भी ख्याल रखना जरूरी है।
    हृदय स्पर्शी कहानी प्रस्तुत किया है आपने मालती जी।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आ०प्रकाश साह जी, आपकी प्रतिक्रिया ने निश्चय ही उत्साहवर्धन किया है

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