सोमवार

जाग हे नारी

आज रो रही भारत माता
व्यथा हृदय की किसे कहे
नारी की लुटती अस्मत को
देख आँख से लहू बहे
मान तेरा अब तेरे हाथ है
मत बन तू लाचार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार।। 

गिद्ध जटायु का वो जमाना
बीत गया त्रेतायुग में
गर्म मांस को खाने वाले
मिलते हैं इस कलयुग में
आएँगे श्री कृष्ण सोचकर
लगा नहीं तु गुहार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार

चीर बढ़ाकर लाज बचाया
ये बातें सब बीत गईं 
राम-कृष्ण की मर्यादा से
ये धरती अब रीत गई
है आज धरा पर व्याप्त हुआ
दुशासन अत्याचार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार

सीता सावित्री बन करके
तूने धर्म निभाया है
द्रौपदी बन बिना शस्त्र भी
अधर्मियों को मिटाया है
छोड़ लचारी बन जा दुर्गा
कर दुश्मन संहार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार।। 

आज कि माता बेटा जनकर
कैसे खुशी मनाएगी
यदि पुत्र/बेटा रावण बन जाए
चैन नहीं वो पाएगी
ऐसे में तो बिना पूत ही
मिलती खुशी अपार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार।। 

चौराहों पर पल्लू खींचें
नहीं कृत्य ये मानव के
नहीं दिखा तू भय अपना मत
बढ़ा हौसले दानव के
रावण भी भयभीत हुआ सुन
सीता की ललकार
जाग हे नारी उठा ले अपने
हाथों में तलवार।। 

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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