आज लिखूँ मैं गीत नया
जो सबके मन को भाए,
नया गीत नव राग लिए
बागों में कोयल गाए।
दादुर मोर पपीहा भी
विरह गीत मिलकर गाएँ,
मैं मिलन का गीत लिख दूँ
विरह व्यथा सब बिसराएँ।
हर दिल का उल्लास बने
ऐसे सुर में गीत सजाऊँ,
पुलक-पुलक मन हरषाए
बन पवन सौरभ बिखराऊँ।
शब्द-शब्द से नेह झरे
हर मन के भाव सजाऊँ,
पृथक करूँ पीर हृदय से
खुशियों के सुमन खिलाऊँ।
देखा जब गीत स्वप्न में
मन खुशी से खिल गया,
सबके मन को जो भाए
लिखे मयंती गीत नया।
मालती मिश्रा 'मयंती'
जो सबके मन को भाए,
नया गीत नव राग लिए
बागों में कोयल गाए।
दादुर मोर पपीहा भी
विरह गीत मिलकर गाएँ,
मैं मिलन का गीत लिख दूँ
विरह व्यथा सब बिसराएँ।
हर दिल का उल्लास बने
ऐसे सुर में गीत सजाऊँ,
पुलक-पुलक मन हरषाए
बन पवन सौरभ बिखराऊँ।
शब्द-शब्द से नेह झरे
हर मन के भाव सजाऊँ,
पृथक करूँ पीर हृदय से
खुशियों के सुमन खिलाऊँ।
देखा जब गीत स्वप्न में
मन खुशी से खिल गया,
सबके मन को जो भाए
लिखे मयंती गीत नया।
मालती मिश्रा 'मयंती'
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआ० रवींद्र भारद्वाज जी आपकी प्रतिक्रिया लेखनी का ऊर्जा स्रोत है सादर आभार🙏
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआ० अनुराधा जी आप की प्रतिक्रिया लेखन के लिए प्रेरित करती है सस्ननेह धन्यवाद
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार आदरणीय
हटाएंअतिसुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरा उत्साह बढ़ाने के लिए हृदय से सादर आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर गीत मीता। मधुर सरस।
जवाब देंहटाएंसस्नेहाभिवादन मीता
हटाएंबहुत सुन्दर सखी 👌
जवाब देंहटाएंदिल से आभार सखी
हटाएंवाह ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आ० मीना जी
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