बुधवार

आज लिखूँ मैं गीत नया

आज लिखूँ मैं गीत नया
जो सबके मन को भाए,
नया गीत नव राग लिए
बागों में कोयल गाए।

दादुर मोर पपीहा भी
विरह गीत मिलकर गाएँ,
मैं मिलन का गीत लिख दूँ
विरह व्यथा सब बिसराएँ।

हर दिल का उल्लास बने
ऐसे सुर में गीत सजाऊँ,
पुलक-पुलक मन हरषाए
बन पवन सौरभ बिखराऊँ।

शब्द-शब्द से नेह झरे
हर मन के भाव सजाऊँ,
पृथक करूँ पीर हृदय से
खुशियों के सुमन खिलाऊँ।

देखा जब गीत स्वप्न में
मन खुशी से खिल गया,
सबके मन को जो भाए
लिखे मयंती गीत नया।

मालती मिश्रा 'मयंती'

14 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आ० रवींद्र भारद्वाज जी आपकी प्रतिक्रिया लेखनी का ऊर्जा स्रोत है सादर आभार🙏

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  2. उत्तर
    1. आ० अनुराधा जी आप की प्रतिक्रिया लेखन के लिए प्रेरित करती है सस्ननेह धन्यवाद

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  4. अतिसुंदर प्रस्तुति...

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    उत्तर
    1. मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए हृदय से सादर आभार आदरणीय

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  5. बहुत सुंदर गीत मीता। मधुर सरस।

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  6. वाह ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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