बुधवार

नारी के प्रति बढ़ते अपराधों का जिम्मेदार कौन ?


 हमारे देश की संस्कृति प्राचीनतम और विश्वविख्यात है, हमारा देश ही वह महिमामय देश है जिसकी पावन भूमि पर महान रिषि-मुनियों ने जन्म लिया, यही वो पावन भूमि है जहाँ भगवान राम और भगवान कृष्ण ने अवतार लिया इसी देश की संस्कृति से विश्व के अन्य धर्मों व संस्कृतियों का प्रादुर्भाव हुआ| धर्मों की दृष्टि से भी देखा जाय तो विभिन्न धर्मों के प्रवर्तक जैसे महात्मा बुद्ध, महावीर जैन आदि ने इसी पावन भूमि को गौरवान्वित किया| वीरता की दृष्टि से भी हमारे देश को सम्राट अशोक, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई जैसे अनेक वीरों ने गौरवान्वित किया|
हमारे देश में जहाँ पहले स्त्री को देवी समान माना जाता था, कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा आज उसे भोग का साधन मात्र मान लिया गया है........
यहाँ स्त्री को पूजनीय मानकर सदा उसका सम्मान किया जाता रहा है , यदि हम अपने धार्मिक ग्रंथों का भी अवलोकन करें तो पाएँगे कि जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता होती है उन सभी की स्वामिनी स्त्री ही है....जैसे-हमें जीने के लिए धन,विद्या(ज्ञान) और शक्ति की आवश्यकता होती है और इन तीनों ही महत्वपूर्ण शक्तियों की स्वामिनी क्रमश: लक्ष्मी जी,  सरस्वती जी और दुर्गा जी हैं...अर्थात् इस पुरुष प्रधान समाज में स्वयं को सर्व समर्थ मानने वाला पुरुष भी निष्कंटक जीवन तभी जी सकता है जब उस पर देवियों की कृपा हो और हर व्यक्ति इस बात को भली भाँति जानता भी है....इसीलिए विभिन्न रूपों में देवियों की पूजा की जाती है|परंतु दुनिया को रास्ता दिखाने वाले इस देश की गरिमा आज इसी के नागरिकों द्वारा कलंकित हो रही है, जिस देश में स्त्री को देवी माना जाता है उसी देश में कन्या भ्रूण हत्या द्वारा उन्हें दुनिया में आने से पहले ही खत्म कर दिया जाता है और जो दुनिया में आ गईं उनमें से कितनों को घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, छेड़-छाड़, तेजाब हमला, बलात्कार जैसे शर्मसार कर देने वाली प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है.....आज स्त्री बेखौफ होकर कहीं भी आ-जा नहीं सकती, आजकल के पुरुषों की मानसिकता इतनी कुंठित हो गई है कि स्त्री तो स्त्री छोटी-छोटी बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाते हैं, ऐसी विक्षिप्त मानसिकता के लोग न सिर्फ लड़कियों के मन में समाज के प्रति असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर रहे हैं बल्कि सभ्य पुरुषों की छवि भी खराब कर रहे हैं| आज समाज में कोई भी लड़की किसी भी व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं कर सकती भला इस प्रकार से किसी समाज या देश का विकास कैसे संभव हो ? जहाँ छोटी-छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं....

समाज में इस तरह की अराजकता फैलाने वाले बीमार मानसिकता के शिकार होते हैं किंतु इनकी ऐसी मानसिकता का जिम्मेदार आखिर है कौन?
आजकल छोटो-छोटे लड़के भी बेखौफ होकर तरह-तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं जिनमें एक बलात्कार भी है| यदि मैं इसपर विचार करती हूँ तो मुझे तो बस यही समझ आता है कि ऐसे अपराधों का जिम्मेदार हमारा समाज और सबसे अधिक परिवार है जो अपने बच्चों को नैतिकता की शिक्षा नहीं दे पाता| लोग पुलिस और कानून पर उँगली उठा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं, नेता या स्वयं को समाज का शुभचिंतक बताने वाले ऐसी हर घटना के बाद अपनी राजनीति करना नहीं भूलते और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर जनता की नजर में स्वयं को उसका हितैषी साबित करने का  प्रयास करते हैं और कुछ रूपयों से और सहानुभूति के बोल बोल कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं...बहुत हुआ तो कैंडल मार्च करते हुए जनता के साथ सड़कों पर उतर आए.. पर क्या आज तक ऐसे कदमों से अपराधों में कोई कमी आई है? उल्टा अपराधी भी विरोध करने वालों में शामिल होकर कैंडल मार्च का हिस्सा बन शरीफों की भीड़ बढ़ाता है.....

मैं नहीं कहती कि कानून सख्त नहीं होने चाहिए बल्कि मैं तो ये कहती हूँ कि कानून सबके लिए समान होना चाहिए एक जुर्म की एक समान सजा सबके लिए होनी चाहिए फिर चाहे वो साठ साल का बुजुर्ग हो, पच्चीस साल का युवा हो या तेरह-चौदह साल का नाबालिग....किंतु सवाल यह है कि नौबत यहाँ तक आए ही क्यों ?क्यों बच्चों की मानसिकता इतनी कुंठित होती है कि वो हैवानियत पर उतर आते हैं? यदि मैं ये कहूँ कि हमारा हाईटेक टेक्निकल समाज ही इसका जिम्मेदार है तो गलत नहीं होगा....आजकल हमारे देश में भी शहरों में सत्तर प्रतिशत परिवार एकल परिवार होते हैं जिनमें अधिकतर परिवारों में माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं वो बच्चों को पूरा समय भी नहीं दे पाते जिससे बच्चे अपने मनोरंजन व पढ़ाई के लिए भी क्रमश: टेलीविजन और ट्यूशन व कंप्यूटर आदि पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में वो उन नैतिक मूल्यों से वंचित रह जाते हैं जो पहले घरों में बच्चों को अपने दादा-दादी व माता-पिता से मिला करते थे| साथ ही आज की आधुनिक सोच जिसके तहत माता-पिता बच्चों का भविष्य बनाने के नाम पर उन्हें उस उम्र में अधिक छूट दे देते हैं जब उन पर ज्यादा अंकुश की आवश्यकता होती है..पढ़ाई के नाम पर अधिक से अधिक समय घर से बाहर बिताते हैं, माता-पिता बिना सवाल किए बच्चों की हर माँग को पूरा करते हैं तथा कभी पैसों का हिसाब नहीं  माँगते, ये भी किशोरावस्था के लड़कों के बिगड़ने का एक कारण है....
आजकल माता-पिता बच्चों को आधुनिक सुविधाएँ मुहैया कराकर अपने-आपको जिम्मेदारी से मुक्त मान लेते हैं जिसके कारण बच्चे मनमाने तरीके से दोस्तों के साथ बिना अच्छे-बुरे का भेद जाने वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है उन्हें पता है कि यदि उनसे गलती भी हो गई तो उन्हें बच्चा समझ कर छोड़ दिया जाएगा|
आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराते हुए बच्चों को मानसिक या शारीरिक आघात न पहुँचे इन बातों का ध्यान रखते हुए आजकल स्कूलों में भी बच्चों को किसी भी प्रकार से दंडित नही किया जाता, इसलिए बच्चे स्कूलों में भी मनमानी करते हैं...दोष स्कूलों का नही यदि माता-पिता ही नही चाहते कि उनके बच्चे को सिखाने के लिए सख्ती बरती जाय तो क्यों कोई स्कूल अपने लिए परेशानी खड़ी करेगा इसीलिए स्कूल भी लिखित सूचना आदि देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं|
इसके साथ ही आजकल विद्यालयों में बच्चों को मातृभाषा, मातृभूमि,देशभक्ति,संस्कृति,संस्कार, समाज के प्रति कर्तव्य, नैतिकता आदि की बातें बताना तो दूर इनसे बच्चों को पूर्णतया अनभिज्ञ रखा जाता है, बच्चों को विदेशी भाषा, विदेशी संस्कृति का ज्ञान तो होता है किंतु अपने देश की संस्कृति से अनभिज्ञ होता है...सभी नामी स्कूलों का महज एक ही ध्येय होता है स्वयं को राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाश्चात्य शैली में सर्वोपरि लाना, जबकि यदि यही स्कूल बच्चों को सर्वोपरि रखकर कार्य करें तो समाज में ऐसी समस्याएँ उत्पन्न न हों...
इस प्रकार जब सभी (माता-पिता, स्कूल) अपनी जिम्मेदारियों का महज दिखावा करते हैं तो बच्चे को नैतिकता का पाठ कौन पढ़ाए??  परिणामस्वरूप यही बच्चे ऐसे-ऐसे अपराधों को अंजाम देते हैं जो कि मानवता को शर्मसार कर दे....

बेटियाँ जो माँ-बाप की लाडली हैं, बेटियाँ जो घरों की लक्ष्मी हैं, बेटियाँ जो दो-दो कुलों का भविष्य हैं, बेटियाँ जो माँबाप के साथ देश का भी गौरव हैं.....उन बेटियों को समाज में सुरक्षित वातावरण देना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है और इसके लिए सबसे जरूरी है प्रत्येक परिवार में अपने बच्चों को नैतिकता की शिक्षा देना तथा विद्यालयों को भी पाश्चात्य सभ्यता के पीछे भागना छोड़ अपनी संस्कृति और सभ्यता पर जोर देना चाहिए ताकि निकट भविष्य में एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके......

साभार- मालती मिश्रा

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर आलेख ! नैतिक मूल्यों का गिरता स्तर हीं सामाजिक पतन का कारण है।

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  2. आप का बहुत-बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए

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  3. आप का बहुत-बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए

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