गुरुवार

काश वो बचपन लौट आए...

                                       

काश कुछ ऐसा हो जाए...
उछल-कूद करता वो बचपन
फिर से मुझको मिल जाए 
काश कुछ ऐसा हो जाए...
स्कूल जाते हुए राह में 
खेतों के गन्ने फिर हमें बुलाएँ 
काश कुछ ऐसा हो जाए...
आधी छुट्टी के वक्त मिलकर
हम वो चटनी-रोटी फिर मिल खाएँ 
काश कुछ ऐसा हो जाए ...
स्कूल से लौटते हुए घरों को 
खेतों में भागें होड़ लगाएँ 
काश कुछ ऐसा हो जाए ...
जाति-धर्म को बिन पूछे
हर किसी को अपना मित्र बनाएँ 
काश कुछ ऐसा हो जाए ...
वो प्यारा बचपन लौट आए 
काश..............

साभार : मालती मिश्रा

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ बचपन के दिन सब से अच्छे होते हैं । बहुत सुंदर ।

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  2. मासूम बचपन खो जाता है दुनिया की भीड़ में...
    बहुत याद आता है सबको बचपन.....
    बहुत सुन्दर बाल रचना

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  3. बहुत- बहुत धन्यवाद कविता जी हौसला आफ़जाई के लिए

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  4. सुन्दर भाव सुन्दर रचना
    कितना प्यारा होता है बचपन
    कितना अच्छा होता है बचपना

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