बुधवार

बेटी क्यों होती है पराई....

बेटी क्यों होती है पराई....
बापू की लाडो मैं थी  पली बड़ी नाजों में थी क्यों विधना ने रीत बनाई  बेटी क्यों होती है पराई ससुर में देखूँ छवि पिता की बाबुल तुमने यही समझाया पिता ससुर ने सालों से  मुझको परदे में ही छिपाया क्या मेरी शक्लो-सूरत बुरी है  जो मेरी किस्मत...

सोमवार

इतिहास को परदे से निकालो सही आयाम भी दो

इतिहास को परदे से निकालो सही आयाम भी दो
'इतिहास को इतिहास ही रहने दो नया आयाम न दो' जी हाँ जिस तरह 'गुड़गाँव' का नाम बदल कर 'गुरुग्राम' और 'औरंगजेब' रोड का नाम बदल कर 'डॉ० कलाम रोड' कर दिया गया तो कुछ लोगों का ऐतराज जताना तो बनता है, भई बड़े प्यार से इन नामों को वर्षों से पोषित किया गया था और अचानक आकर कोई गैर...

शनिवार

सांसों के पन्नों पर....

सांसों के पन्नों पर....
सांसों के हर इक पन्ने पर लिखी एक नई कहानी है, पढ़ता तो हर व्यक्ति है इसको पर सबने मर्म न जानी है। स्वार्थ पूर्ति महज नही है ध्येय हमारे जीवन का, परोपकार सत्कर्म हेतु ही सांसों की रवानी है।  आँखों में छवि मानवता की जिह्वा पर हरि बानी है, चरण उठें सेवा...

बुधवार

हकदार वही है

हकदार वही है
पथ के काँटे चुन ले जो फूलों का हकदार वही है, तोड़ पहाड़ बहा दे झरना उसके लिए मृदु धार बही है  धारा के विपरीत बहा जो  नई कहानी का रचनाकार वही है प्यास बुझाए जो हर प्राणी के  पनघट का सरकार वही है तूफानों से लड़-लड़कर राह नई बना ले जो नई ऊँचाई,...

परिवार

परिवार
"नहीं मिला तुझको जहाँ प्यार  छोड़ दे तू वो घर-बार आजा तू अब मेरे साथ मैं दूँगा तुझको परिवार न पा सकी जिसमें सम्मान तोड़ दे वो रिश्ता नादान जीने की राह मैं सिखाऊँगा तुझको सम्मान दिलाऊँगा समझौते कर-कर इस जीवन में  तू तो जीना भूल गई  धर्म निभाने...

रविवार

मजदूर

मजदूर
कॉलोनी के बड़े से गेट के बाहर जो लम्बी सी सड़क जा रही है  थोड़ा सा आगे चलकर  उसी सड़क की पगडंडी पर लम्बी सी कतारों में  कुछ बैठे तो कुछ खड़े मिलेंगे सूरज के साथ ही निकल पड़ते हैं ये भी अपने पूरे दिन के सफर पर पास आकर रुकती है मोटर पलक झपकते ही...