गुरुवार

आशा की किरन


इक आशा की किरण पाने को
अंधकार में भटक रही है,
आँखों में उदासी के बादल
मसि बन अश्रु बिखर रही है।

शब्द-शब्द में पीर बह रही 
खामोशियाँ चीत्कार कर रहीं 
पीड़ा किसी को दिखा न सके जो 
वो शब्दों में हाहाकार कर रही।

जुबाँ खामोशी की चादर ओढ़े
अधरों पर निःशब्दता का पहरा
आँखों का असफल प्रयास भी
पलकों तक आकर ठहरा।

अनकहे अनसुने शब्दों में
हाहाकार सुनाई देता,
शांत नयन में झिलमिल करते
अपरिमित व्याकुलता देखा।

सूना दर्पण जीवन का
हर गुजरे पड़ाव बताता है,
कोरे कागज का रीतापन
अकथ्य कथा सुनाता है।

अधर सकुचाने लगे जब 
ज़ज़्बात घबराने लगे,
हिय की सब आकुलता 
तब नयन बतलाने लगे।

मुस्कुराते अधरों के पीछे
उदासी की बदली घिर आई
चहकती खनकती सी हँसी में
मन की चीख पड़ती है सुनाई।

मालती मिश्रा

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