बहुत याद आता है गुजरा जमाना
वो अल्हड़ औ नटखट सी बचपन की सखियाँ
वो गुड्डा और गुड़िया की शादी की बतियाँ
वो पलभर में झगड़ना रूठना और मनाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना.......
वो गाँव की चौड़ी कहीं सँकरी सी गलियाँ
वो गलियों में छिप-छिप के सबको चिढ़ाना
वो दादा जी का छड़ी दिखाकर डराना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना....
वो मन भाती दुल्हन की बजती पायलिया
वो शर्माती आँखों को ढँकती चुनरिया
वो देखने को उसको बहाने बनाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना....
वो बाबा की लाठी को चुपके से उठाना
दिखा करके उनको वो दूर से चिढ़ाना
वो उनके झूठे गुस्से पर तालियाँ बजाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना.....
वो खेतों-खलिहानों की मीठी सी यादें
वो गन्ने की ढेरी पर जागी सी रातें
वो मस्ती में कोल्हू के बैलों संग चलते जाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना.....
वो ओस में भीगी खेतों की हरियाली
वो बेमौसम बारिश कराती सी डाली
वो कोहरे की चादर में खेतों का छिप जाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना........
वो पनघट पर हँसती चहकती सी गोरी
वो नदिया की कल-कल ज्यों गाती सी लोरी
वो पानी में कागज की नावों का चलाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना........
वो बारिश के पानी में मेढक की टर-टर
वो खेतों से आती सी झींगुर की झर-झर
वो बारिश में हरियाली का नहाकर निखर जाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना.....
वो बारिश के पानी का घुटनों तक भर आना
पानी में उतर कर तैराकी दिखाना
वो अल्हड़ से बचपन का उसमें नहाना
बहुत याद आता है गुजरा जमाना.......
मालती मिश्रा
बहुत याद आता है गुजरा जमाना....
जवाब देंहटाएंसुंदर कृति
प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत आभार पुरुषोत्तम कुमार जी।
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