शनिवार


चलो अब भूल जाते हैं
जीवन के पल जो काँटों से चुभते हों
जो अज्ञान अँधेरा बन
मन में अँधियारा भरता हो
पल-पल चुभते काँटों के
जख़्मों पे मरहम लगाते हैं
मन के अँधियारे को
ज्ञान की रोशनी बिखेर भगाते हैं
चलो सखी सब शिकवे-गिले मिटाते हैं
चलो सब भूल जाते हैं....

अपनों के दिए कड़वे अहसास
दर्द टूटने का विश्वास
पल-पल तन्हाई की मार
अविरल बहते वो अश्रुधार
भूल सभी कड़वे अहसास
फिरसे विश्वास जगाते हैं
पोंछ दर्द के अश्रु पुनः
अधरों पर मुस्कान सजाते हैं
चलो सब शिकवे-गिले मिटाते हैं
चलो सब भूल जाते हैं....

अपनों के बीच में रहकर भी
परायेपन का दंश सहा
अपमान मिला हर क्षण जहाँ
मान से झोली रिक्त रहा
उन परायेसम अपनों पर
हम प्रेम सुधा बरसाते हैं
संताप मिला जो खोकर मान
अब उन्हें नहीं दुहराते हैं
चलो सब शिकवे-गिले मिटाते हैं
चलो सब भूल जाते हैं....
मालती मिश्रा

4 टिप्‍पणियां:

  1. चलो सब शिकवे-गिले मिटाते हैं
    चलो सब भूल जाते हैं....
    ... आसान नहीं होता अपनों को भूलना
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. भूलना आसान तो नहि होता पर भूलने की दिशा में उठाया हुआ एक क़दम भी बहुत है ... मन को हल्का कर जाता है ...

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    1. प्रतिक्रिया देकर हौसला बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय। आपने सत्य ही कहा भूलना आसान नहीं होता पर न भूलना जीवन मुश्किल कर देता है।

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