गुरुवार

प्रश्न उत्तरदायित्व का...

हम जनता अक्सर रोना रोते हैं कि  सरकार कुछ नहीं करती..पर कभी नहीं सोचते कि आखिर देश और समाज के लिए हमारा भी कोई उत्तरदायित्व है, हम सरकार की कमियाँ तो गिनवाते हैं परंतु कभी स्वयं की ओर नहीं देखते। मैं सरकार का बचाव नहीं कर रही और न ही ये कह रही हूँ कि सरकार के कार्य में कमियाँ नहीं होतीं या वह सबकुछ समय पर करती है, ऐसा कहकर मैं आप पाठक मित्रों की कोपभाजन नहीं बनना चाहती। परंतु प्रश्न जरूर है कि क्या ये संभव है कि बिना जनता के सहयोग के सरकार की सभी योजनाएँ सफल हों? ज्यादा गहराई में न जाकर मैं सिर्फ स्वच्छता अभियान की बात करती हूँ...आज ही मेरे समक्ष ऐसी घटना घटी जिसके कारण मुझे सरकार पर नहीं जनता पर क्रोध आ रहा है। मैं शेयरिंग ऑटो में बैठी थी, मेरे सामने की सीट पर एक महानुभाव बैठे थे, अधेड़ उम्र के मुँह में गुटखा चबाते हुए महाशय सरकार से बड़े कुपित थे और अपने साथ वाले मित्र से ऐसे बातें कर रहे थे जैसे राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी तो वही हैं। बात-बात पर सरकार को गाली, सरकार जनता को मूर्ख बना रही है कच्चा तेल सस्ता है सरकार ने पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ा दिए, मोदी तो बस बातें बड़ी-बड़ी करता है पर काम कुछ नहीं करता और कहते हुए मुँह में भरा हुआ गुटखा ऑटो से बाहर सड़क पर ही थूक दिया। मैं पहले से ही उनकी बातें बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर रही थी अब ये इतनी सारी तरल गंदगी जो वो सड़क पर फैल चुकी थी, मुझसे सहन न हो सका मैं बोल पड़ी.. "आप कहते हैं सरकार कुछ नहीं करती पर आप बताइए आप समाज के लिए क्या करते हैं?"  हम क्या कर सकते हैं , क्या हम देश चलाते हैं? उन महाशय ने लगभग भड़कते हुए कहा। "
क्यों आप क्या सिर्फ सरकार को गालियाँ दे सकते हैं, सरकार ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की ये तो आपको पता है न? फिर इसमें सहयोग देने की बजाय आप सड़क पर ही गंदगी फैलाते हुए चल रहे हैं तो क्या उम्मीद करते हैं कि अब मोदी जी को आकर आपकी फैलाई वो गंदगी साफ करनी चाहिए?"
यदि वो महाशय एक संभ्रांत व्यक्ति होते तो निःसंदेह अपनी गलती पर शर्मिंदा होते परंतु जैसा कि मुझे उम्मीद थी वो बड़ी ही बेशर्मी से भड़क कर बोले - "तो क्या गले में डब्बा बाँध के चलूँ?"
"नहीं मुँह पर टेप लगाकर चलिए, जबान और सड़क दोनों साफ रहेंगे"...कहकर मैं उतर गई। परंतु मुझे अफसोस हो रहा था कि मैंने बेहद अशिष्टता से जवाब दिया था परंतु उस व्यक्ति के सरकार और मोदी जी के लिए प्रयुक्त शब्द ध्यान आते हैं तो अपनी गलती नगण्य प्रतीत होती है और सोचती हूँ कि समझदार व्यक्ति को समझाया जाता है मूर्ख और अशिष्ट को समझाना मूर्खता है।
 हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने यह अभियान तो शुरू किया, लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए खुद भी झाड़ू लगाया और अपने नेताओं से भी लगवाया, कहीं-कहीं असर भी देखने को मिला पर जनता यानि हम-आप क्या करते हैं? मैं आज भी देखती हूँ लोग चलते-चलते थूकते, हाथों में पकड़े हुए स्नैक्स के रैपर ऐसे ही सड़क पर फेंक देते हैं, बस स्टॉप के पीछे या आसपास कहीं थोड़ा भी खाली ऐसा आवा-जाही वाला स्थान हुआ तो वहीं पेशाब कर-करके उस खुली जगह को शौचालय से भी बदतर बना देते हैं और ये सब तब होता है जब वहाँ से चंद कदमों की दूरी पर कूड़ेदान और शौचालय मौजूद होते हैं। मौजूदा स्थिति में सरकार की क्या गलती? क्या ये ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की है कि वो हाथों में झाड़ू लेकर आप के पीछे-पीछे चलें और जहाँ आप थूकें वो साफ कर दें, पर आप कष्ट नहीं उठाएँगे कि नियमों का पालन करके स्वच्छता में अपना थोड़ा योगदान दें।
मालती मिश्रा

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणिया अनुजा मालती मिश्रा आपका ये लेख वाकई प्रेरक है मगर उन लोगो के लिये जो ऐसे विचारो को पढते है सुनते है ।। बाकी के लिये तो उस दोहे के समान है जिसमे कहा गया है कि --->
    सीख वाकू दीजीये जाको सीख सकाय ।
    सीख ना बंदर दीजीये घर बया को जाय ।।
    ऐसे लोगो के लिये तो----->
    मूरख तो समझे नही लाख करो किन कोय ।
    इन से जब कोई बात करो तो हाथ मे डण्डा होय ।।
    और ऐक कहावत भी है कि लातो के भूत बातो से नही मानते है ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय भाई जी आपके विचार तो सदा ही अनुकरणीय होते हैं और आपने सत्य कहा है कि सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय... मेरा भी यही मानना है इसलिए मैं सीख तो नहीं देती परंतु मेरे समक्ष कोई गलत बोले तो वो एक सीमा तक ही सहन कर पाती हूँ फिर मैं भी अपने विचार जरूर रखती हूँ। यह लेख भी यही सोचकर लिखा कि यदि सरकार को गालियाँ देने वाले अपने आधारहीन बात कहने से नहीं चूकते तो हमें सत्य बोलने और लिखने में क्यों हिचकिचाना।
      ब्लॉग पर आपका आना मेरे लिए आशीर्वाद स्वरूप है, आपका बहुत-बहुत आभार अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए।

      हटाएं

Thanks For Visit Here.