शुक्रवार

चयन का अधिकार

व्यथित हृदय मेरा होता था
देख के बार-बार,
राष्ट्रवाद को जब जहाँ मैं
पाती थी लाचार।

संविधान ने हमें दिया है
चयन हेतु अधिकार,
राष्ट्रहित के लिए बता दो
किसकी हो सरकार।

लालच की विष बेल बो रहे
करके खस्ता हाल,
जयचंदों को आज बता दो
नहीं गलेगी दाल।

चयन हमारा ऐसा जिससे
बढ़े देश का मान,
विश्वगुरु फिर कहलाएँ और
भारत बने महान ।।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

2 टिप्‍पणियां:

  1. लालच की विष बेल बो रहे
    करके खस्ता हाल,
    जयचंदों को आज बता दो
    नहीं गलेगी दाल। बहुत खूब | अब यही निर्णय तो करना है स्वविवेक से और सजगता से काबिल व्यक्ति का चयन करना ही होगा | बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप मालती जी | सस्नेह शुभकामनायें |

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    1. आ० रेणच जी आपकी प्रतिक्रिया से लेखनी को ऊर्जा मिलमिली बहुत बहुत धन्यवाद

      हटाएं

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