शनिवार

संविधान या परिधान

संविधान या परिधान
संविधान या परिधान! संविधान! क्या हो तुम तुम्हारा औचित्य क्या है? मैंने पूछा संविधान से.. मैं! मैं संविधान हूँ, अर्थात्..... सम+विधान सबके लिए समान कानून। बड़े गर्व से बताया संविधान ने समान कानून! कहाँ है यह समान कानून? हमारे यहाँ तो जहाँ सुनो संविधान की चर्चा है पर समान...

गुरुवार

नीली डायरी 'वो खाली बेंच' से आगे

1 आज कई दिनों के बाद सूरज की स्वर्णिम चमक आँखों को चुभती सी प्रतीत हो रही थी लेकिन शरीर को इस धूप की मीठी गरमाहट बहुत भली लग रही थी। पूरे हफ्ते सूर्य देव ने दर्शन नहीं दिया न! इसीलिए आँखों को तेज धूप की आदत ही छूट गई है। पेड़-पौधे भी मानो झूम-झूमकर अपनी खुशी दर्शा रहे...