बुधवार

प्रदूषण आधुनिकता की देन


प्रदूषण की परिभाषा बहुत ही व्यापक है, वर्तमान में प्रदूषण मुक्त वातावरण कल्पना मात्र बनकर रह गया है। हवा हो, पानी हो या खाद्य पदार्थ, सभी दूषित हो गए हैं और यह सब हम मानवों की ही देन है। आज मनुष्य सहूलियतों का गुलाम बनकर रह गया है और सुविधाओं का यही लालच हमें दिन प्रतिदिन प्रकृति से दूर ले जा रहा है और जो प्रकृति हमारी जीवनदायिनी है हम उसी के शत्रु बन बैठे, यही वजह है कि आज हम शुद्ध वायु में साँस लेने को तरस रहे हैं। आज प्रदूषण से बचने के लिए हम कभी मास्क खरीद लेते हैं कभी एयर प्योरिफायर तो वहीं पानी के लिए  आर ओ लगवाते हैं कभी बिसलरी का प्रयोग करते हैं। लेकिन प्रदूषण फैलाना कम नहीं करते। न तो वृक्षों की अंधाधुंध कटाई में कमी आई न ही भूमि अधिग्रहण में कोई कमी आई है, न नदियों को दूषित करने में कमी आ रही है और न ही हवा को दूषित करने में। ऐसे में कृत्रिम वस्तुओं से प्रदूषण से मुक्ति का स्वप्न देखते हैं।
वर्तमान समय में प्रदूषण से मुक्ति के लिए सरकार द्वारा दृढ़ इच्छाशक्ति की और कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। चीन के बीजिंग में बनाए गए एयर प्योरिफायर टावर की तरह यहाँ भी बड़ा कदम उठाए जाने की आवश्यकता है साथ हैं हरियाली को अधिकाधिक बढ़ाने के लिए वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण तथा नदियों को स्वच्छ रखने के लिए लोगों में जागरूकता की आवश्यकता है। हालांकि हमारे देश के नागरिक  पश्चिमी सभ्यता की नकल जरूर करते हैं पर जहाँ खुद थोड़ा सा प्रयास और त्याग खुद करने की आवश्यकता होती है वहीं सरकार पर दोषारोपण प्रारंभ कर देते हैं।
जबकि हम नागरिकों को चाहिए कि अपना स्वार्थ दरकिनार कर समस्त प्राणियों के विषय में सोचते हुए अपने-अपने हिस्से की कोशिश करें। नदियों के जल को दूषित न करें, वृक्षों का कटाव न करें तथा वृक्षारोपण को अधिकाधिक बढ़ावा दें, अनाज उत्पादन करते समय कीटनाशकों का प्रयोग यथासंभव नजरअंदाज करें तथा जैविक खेती को अपनाएं। अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रखें तथा वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों का प्रयोग कम करें। ध्वनि प्रदूषण न फैलाने के लिए हॉर्न, लाउडस्पीकर आदि का प्रयोग सीमा के भीतर रहकर करें।
जब तक देश के नागरिक  दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सरकार का सहयोग नहीं करते तब तक अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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