शनिवार

संविधान या परिधान

संविधान या परिधान!

संविधान!
क्या हो तुम
तुम्हारा औचित्य क्या है?
मैंने पूछा संविधान से..

मैं!
मैं संविधान हूँ,
अर्थात्..... सम+विधान
सबके लिए समान कानून।
बड़े गर्व से बताया संविधान ने

समान कानून!
कहाँ है यह समान कानून?
हमारे यहाँ तो जहाँ सुनो
संविधान की चर्चा है
पर समान कानून का तो
बड़ा टंटा है।
मैंने कहा..

हमारे देश में कानून
सबके लिए समान है
संविधान ही तो इस देश की जान है...
गर्व से कहा संविधान ने..

सही कहा..
तभी तो हमारे देश की व्यवस्था की
सांसें उखड़ी रहती हैं
संविधान! तू खुद जो बीमार है,
यदि कानून होता समान
तो समान अपराध करने वाला
सजा भी पाता समान
घृणित कुकर्म करने वाले
निर्भया के अपराधी को
सिलाई मशीन और रुपए
ईनाम देकर न छोड़ा जाता
समान होता कानून..
तो अपराधियों को
अपने को निर्दोष सिद्ध करने का
अवसर न दिया जाता,
संविधान! तू दोषपूर्ण है....
अन्यथा कुछ घंटों में
निर्भया के शरीर का
चीर-फाड़ करने वालों को
सालों तक
सरकारी मेहमान बनाकर
न रखा जाता
कैसा है तू संविधान...
जो धर्म देखकर
रंग बदल देता है,
पैसा देखकर ढंग
बदल देता है,
जो गरीब बेकसूर को सजा
और अमीर अपराधी को
गिरफ्तारी से पहले ही
बेल दे देता है।
वाह रे संविधान!
तू देश को गालियाँ देने का
अधिकार भी देता है
और परिवारवाद की
सरपरस्ती भी करता है
कैसा है तू!
जो एक धर्म पर
बंदिशें लगाता है
तो दूसरे धर्म के लिए
अलग न्यायालय खुलवाता है..
वाह!
कैसा संविधान है तू!
जो एक वर्ग विशेष की
संतानों की
संख्या निर्धारित करता है
तो दूसरे वर्ग विशेष को
असीमित संतानों का
वरदान देता है!
क्या यही है...
तेरा सम+विधान?
यदि हाँ.....
तो नहीं चाहिए ऐसा संविधान!
बदल दो ऐसे संविधान को
जैसे...
विवाहोपरांत लड़की का
उपनाम बदल दिया जाता है,
खत्म करो ऐसे संविधान को!
जैसे बालविवाह, सतीप्रथा
जैसी कुरीतियों को
खत्म कर दिया,
खत्म करो
ऐसे संविधान को
जैसे..
अन्य रूढ़ियों को खत्म किया,
वैसे ही खत्म करो..
या संशोधन करो
संविधान को सम विधान बनाओ
परिधान नहीं....

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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