शनिवार

चाय का ढाबा

चाय का ढाबा

मोनू ने बैठक में प्रवेश करते ही अपना बस्ता सोफे पर फेंका और जूते  खोलकर पैरों से ही हवा में उछाल दिए। थोड़ी-सी ऊँचाई नापने के बाद जूते उछलकर मेज पर जा बैठें इससे पहले ही मोजे उतारकर एक पैर का मोजा दाँयी ओर और दूसरे पैर का मोजा बायीं ओर उछाल दिया।
मोनू की इस हरकत से अंजान राधा ने मेज पर जैसे ही नया कप सेट रखा, जूता हवा की सैर करता हुआ सीधा केतली की गहराई नापने के लिए उसमें प्रवेश कर गया और केतली के साथ ही मेज से नीचे गिरकर केतली को शहीद कर गया।
"हे भगवान इस बच्चे ने नया सेट खराब कर दिया।" कहती हुई राधा ने गुस्से से उसकी ओर देखा।
वह सहम गया और भागकर दूसरे कमरे में जाकर दादी जी के पीछे दुबक गया।
"क्या हुआ बेटा फिर कोई शरारत की?" दादी ने कहा।
"व वो दादी मुझसे क्राकरी टूट गई, मम्मी गुस्से में आ रही हैं, प्लीज! मुझे बचा लीजिए।" कहते हुए मोनू दादी के पीछे छिप गया।
"पर गलती तो तुम्हारी ही है न, तुम कभी भी अपनी चीजें जगह पर नहीं रखते और हर चीज को फेंकते हो, नुकसान तो होता ही है और कभी सोचा तुमने कि किसी के चोट भी लग सकती है।" दादी ने उसे हाथ पकड़कर अपने आगे खींचते हुए कहा।
तभी राधा वहाँ आ पहुँची, मम्मी जी आज आप कुछ मत बोलिएगा, ये बहुत शरारती हो गया है।" कहते हुए राधा ने मोनू को अपनी ओर खींचा ही था तभी दादी बोलीं, "रुको राधा, मारो मत, इसकी गलती की सजा ही देनी है तो ऐसी दो जिससे यह सुधर सके।"

"कैसे सुधारूँ इसे? मुझे समझ नहीं आता।" राधा झल्लाती हुई वहीं बैठ गई।
"आज माधव को आने दे, मैं उससे ही बात करती हूँ, तू अब इसकी चिंता छोड़ और जा अपना काम कर।" दादी ने मोनू की मम्मी की समझाकर भेज दिया।
मोनू खुश हो गया, दादी ने उसे पिटाई से बचा जो लिया था। वह जानता था कि मम्मी का गुस्सा भी कुछ देर का ही है फिर वह भी शांत हो जाएँगीं। पापा जब भी उसकी शरारतों पर गुस्सा होते हैं तब मम्मी ही तो उसे बचाती हैं। और आज जब वो गुस्सा हुईं तो दादी ने बचा लिया। अरे वाह उसे बचाने वाले तो दो-दो लोग हैं। ऐसा सोचकर वह मन ही मन खुश होता हुआ अपने कमरे में चला गया, पर वो इस बात से अंजान था कि दादी सचमुच आज उसे सबक सिखाने के ही बारे में सोच रही थीं।

शाम को माधव के आने पर दादी जी लॉन में बैठकर उनसे न जाने क्या बातें कर रही थीं मोनू खेलते हुए दूर से ही उन्हें देख रहा था, जब भी पापा उसकी ओर देखते वह न जाने क्यों डर जाता। उसे ऐसा लग रहा था जैसे दादी उसी की शिकायत कर रही थीं, बीच-बीच में कभी दादी, कभी पापा उसकी ओर देखते तो उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती। वह घर में किसी से नहीं डरता था सिवाय अपने पापा माधव के। आज उसका खेलने में मन नहीं लग रहा था बार-बार ध्यान उधर ही जा रहा था, मन कर रहा था कि किसी प्रकार उनकी बातें सुन सकता तो कितना अच्छा होता! पर इतना साहस नहीं था कि वह पास जाकर उनकी बातें सुनने की कोशिश करता। तभी पापा ने उसे इशारे से अपने पास बुलाया। वह डरते-डरते उनके पास गया।
"ज्ज्ज जी पापा!"
"तुम अपने दो-तीन ड्रेस पैक कर लो, कल कहीं जाना है।" पापा ने कहा।
"जी" कहकर वह बिना कुछ पूछे या सुने वहाँ से ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग। उसे लगा था कि पापा उसे डाँटने के लिए बुला रहे हैं पर जब उन्होंने कुछ और नहीं कहा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
मोनू सुबह से ही दादी और मम्मी से जानने की कोशिश कर रहा था कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं? पर किसी ने कुछ नहीं बताया। कार की डिक्की में सिर्फ उसके कपड़ों का बैग रखा गया तब भी उसे कुछ अजीब लगा पर उसके पूछने पर "पापा जी से ही पूछ लो।" कहकर मम्मी चुप हो गईं। वह गाड़ी में पूरे रास्ते इसी उलझन में रहा कि आखिर कोई उसे कुछ बता क्यों नहीं रहा, सिर्फ उसके ही कपड़े क्यों? पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सुबह के करीब ग्यारह बज रहे थे, माधव ने गाड़ी एक चाय के ढाबे पर रोकी।

ढाबे के बाहर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आठ-दस मेजें और उनके चारों ओर कुर्सियाँ बिछी थीं। दो-तीन चारपाइयाँ भी थीं। कुर्सियों पर बैठे कोई नाश्ता कर रहा था तो कोई चाय पी रहा था। मोनू के मम्मी-पापा और दादी भी एक खाली मेज देखकर बैठ गए।
"ए छोटू इधर आ।" आवाज सुनकर मोनू ने पलट कर देखा उसके पीछे वाली मेज पर बैठे व्यक्ति ने आवाज लगाई थी तभी हाथ में खाली ट्रे लिए हुए भागता हुआ एक आठ-नौ साल का बच्चा वहाँ आया।
"जी साहब क्या लाऊँ?" उसने पहुँचते ही कहा।
वह व्यक्ति उसे कुछ बता ही रहा था तभी दूसरी मेज से आवाज आई.."अरे छोटू पानी दे जा।"
पहली मेज का ऑर्डर लेकर उस बच्चे ने जल्दी से जाकर दूसरी मेज वाले को पानी दिया और ऑर्डर लेने जा ही रहा था तभी कहीं और से आवाज आई "अरे छोटू दो चाय लाना।"
"जी साहब।"
माधव वहाँ से उठकर बिना कुछ कहे ढाबे के अंदर चले गए।
इसी तरह वह बच्चा एक मेज से दूसरी, दूसरी से तीसरी बिना रुके भाग रहा था।
"ए छोटू इधर आ।" एक और मेज से आवाज आई।
"जी साहब" वह पहुँचकर खड़ा हो गया।
"ये क्या है? इस चाय में ये क्या गिरा हुआ है? मैं ये मच्छर वाली चाय पीऊँगा!" उस ग्राहक ने उसे डाँटते हुए कहा।
मोनू का पूरा ध्यान उस बच्चे पर था, उसे लग रहा था कि इतना छोटा बच्चा कैसे इतना सब कुछ कर लेता है।
तभी उस व्यक्ति के चिल्लाने की आवाज सुनकर ढाबे का मालिक वहाँ आ गया।
"क्या हुआ सर, हमारे लड़के से कोई गलती हो गई क्या?" उसने बड़ी विनम्रता से पूछा।
"गलती! ये मुझे चाय देकर गया बिना ये देखे कि इसमें मच्छर गिरा हुआ है, तुम लोग तो ग्राहक को कुछ भी कीड़ा-मकोड़ा खिला दोगे।"
ढाबे के मालिक ने क्रोध से छोटू की ओर देखा। वह डर के मारे सूखे पत्ते सा काँप गया। "न..न..नहीं साहब जब मैं देकर गया था तब नहीं.." तड़ाक्
उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया ढाबे के मालिक ने। छोटू धड़ाम् से नीचे गिर पड़ा।
मोनू झटके से खड़ा हो गया, उसने ये स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि इतने छोटे से बच्चे के साथ कोई ऐसा भी कर सकता है। सभी की नजरें छोटू और उसके मालिक पर जमी थीं पर किसी ने कुछ नहीं बोला। वह बेचारा वहीं जमीन पर पड़ा सुबकता रहा।
"चुपचाप जाकर दूसरी चाय लाकर दे और ग्राहक से दुबारा जबान लड़ाया तो हड्डी-पसली तोड़ दूँगा।" दहाड़ते हुए बोला ढाबे के मालिक ने।
वह सुबकता हुआ उठा, अपनी फटी हुई कमीज की बाजू से आँसुओं से भीग चुके गालों को पोंछते हुए वापस काम पर लग गया।
माधव आकर अपनी जगह बैठ गया था।
"हम यहाँ क्यों रुके हैं जी, कहीं और चाय पी लेंगे। यहाँ देखिए न बच्चे के साथ कितनी कठोरता से पेश आते हैं।" राधा माधव से बोली। दादी मोनू के चेहरे के बदलते रंगों को बड़े ध्यान से देख रही थीं।
"आपके लिए कुछ लाऊँ साहब।" अचानक छोटू की आवाज सुनकर मोनू चौंका और उसकी ओर पलटकर देखा। उसके बाएँ गाल पर उँगलियाँ अपने निशाना अंकित कर चुकी थीं, आँखें सूज गईं थीं।
"तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आई बेटे।" दादी का कोमल हृदय उसे देखते ही भावुक हो उठा था।
वो चुपचाप सिर झुकाकर आँखों में आए आँसुओं को छिपाने का असफल प्रयास करने लगा, किन्तु आँसुओं की कुछ बूँदें उसके ही नंगे पैर के अँगूठे पर गिरकर आँखों में अपनी उपस्थिति की गवाही दे गईं।
"तुम्हारा नाम क्या है?" राधा ने पूछा।
"छोटू।" उसने जवाब दिया।
"इसके अलावा भी तो कोई नाम होगा न बेटे।" दादी बोलीं।
"पता नहीं, मैं दिन-रात यही नाम सुनता हूँ तो और किसी नाम का कोई वजूद ही नहीं बचा अब। कोई नाम था भी या नहीं, ये भी याद नहीं।" उसने सिर झुकाए हुए ही कहा।
"तुम्हारे माता-पिता क्या करते हैं, कहाँ रहते हैं?" राधा ने पूछा।
"मेरे कोई नहीं है मैडम, यह चाय का ढाबा ही मेरा इकलौता ठिकाना है, तभी तो..." कहते हुए वह चुप हो गया।
"अच्छा तुम हमारे लिए तीन कप चाय और एक गिलास दूध ला दो।" अचानक माधव ने जो अब तक खामोश बैठा न जाने क्या सोच रहा था, कहा। छोटू चला गया।
"मोनू! तुम दूध पी लो और अगर कुछ खाना है तो बता दो, वो भी मँगवा देता हूँ। उसके बाद तुम्हें आज से यहीं रहना है कम से कम एक हफ्ते या जरूरत हुई तो उससे भी ज्यादा दिनों के लिए।" माधव ने मोनू के चेहरे पर नजरें गड़ाकर कहा।

"क्या???" मोनू के पैरों के नीचे से जैसे किसी ने धरती खींच ली हो। वह झटके से खड़ा हो गया।
"हाँ, यहाँ रहकर तुम अनुशासन सीखोगे, छोटू के साथ उसी की तरह काम करोगे। जब सब सीख जाओगे, मेरा मतलब है चीजें जगह पर रखना, तमीज से पेश आना, अपना काम ही नहीं दूसरों के काम में भी सहायता करना, तब मैं तुम्हें यहाँ से ले जाऊँगा। ढाबे के मालिक से मेरी बात हो गई है, जब वो मुझे फोन करके बताएगा कि तुम सब सीख गए हो, तब मैं आऊँगा तुम्हें लेने।" माधव की आवाज सर्द और सपाट थी।
मोनू को सब समझ में आ रहा था, उसने दादी की ओर देखा, वो चुपचाप उसी की ओर देख रही थीं। पापा उठकर कार की ओर चले गए। मोनू के पैर काँप रहे थे, पहले एक पल को उसे लगा कि शायद पापा उसे डरा रहे हैं पर सभी के चेहरे की गंभीरता देखकर और मम्मी की आँखों में झिलमिलाते आँसू देखकर मोनू समझ गया कि वे उससे मजाक नहीं कर रहे हैं। छोटू मेज पर चाय रख रहा था तभी पापा मोनू के कपड़ों का बैग लेकर आ गए।
"म..मम्मी! प्लीज़ पापा को समझाओ न.." मोनू की आँखों से आँसू निकलकर गालों पर ढुलक गए।
"बेटा ये तुम्हारी ही भलाई के लिए है, मम्मी इसमें कुछ नहीं कर सकती।" दादी की आवाज में सख्ती थी।
"मम्मी प्लीज़!" कहते हुए मोनू राधा से लिपटकर रो पड़ा।
"स्सॉरी बेटा, काश कि तुम मेरी बात पहले ही मानने लगे होते।" राधा ने उसे खुद से अलग करते हुए कहा।
"मैं नहीं रुकूँगा यहाँ प्लीज़ पापा, मैं प्रॉमिस करता हूँ कि अब से आप सबकी बात मानूँगा, कोई शरारत नहीं करूँगा। अगर नहीं मानूँ तब लाकर छोड़ देना, प्लीज़ लास्ट चांस पापा प्लीज़।" मोनू हाथ जोड़कर जोर-जोर से रोने लगा और रोते-रोते अपने घुटनों पर बैठ गया। दादी को उसकी दशा देखकर दया आ गई, राधा की भी आँखें बरसने लगीं, वो भूल गई कि ये सब एक नाटक था मोनू को सबक सिखाने के लिए।
"माधव! अगर ये इतना कह रहा है तो इसे एक लास्ट चांस देकर देख लेते हैं, अगर इसने अपना रवैया नहीं बदला तो ढाबा कहाँ भागा जा रहा है।" दादी उसकी ओर बढ़कर उसे उठाती हुई बोलीं।
"सोच लीजिए मम्मी, ये इसकी पुरानी आदत है।" माधव ने कहा।
"पापा पक्का प्रॉमिस अब कभी मैं शरारत नहीं करूँगा, आप लोग जो कहेंगे मैं सब मानूँगा प्लीज़।" मोनू वैसे ही बैठे-बैठे हाथ जोड़कर बोला।
"ठीक है, खड़े हो और अपनी जगह पर बैठो। मम्मी मैं अभी ढाबे के मालिक से मिलकर आता हूँ।" कहकर माधव ढाबे के अंदर चला गया।
"आप ढाबे के मालिक है?" माधव ने गल्ले के पास बैठे सेठ जैसे दिखने वाले व्यक्ति से कहा।
"जी सर कहिए क्या सेवा करूँ आपकी?" उस व्यक्ति ने कहा।
"बाहर आइए सेवा मुझे करनी है आपकी।" माधव ने कहा।
वह बाहर आया। माधव ने पूछा- "कितने सालों से ये चाय का ढाबा चला रहे हो?"
"बारह साल हो गए सर, लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं।" वह बोला।
"बाल मजदूरी करवाना गैर कानूनी है, ये पता तो है न?" माधव की आवाज सख्त हो गई।
"मतलब?" वह अचकचाकर बोला।
"मतलब ये कि अभी आप यहाँ सबको चाय पिला रहे हो कल से ये ढाबा सील हो जाए और आप जेल की चाय पियो, ऐसा तो नहीं चाहोगे न? और अगर ऐसा नहीं चाहते तो उस बच्चे छोटू को अभी इसी वक्त मुक्त करो, मैं उसे लेकर जाऊँगा। उसकी शिक्षा की व्यवस्था करूँगा और एक आम बच्चे की तरह वह भी अपना जीवन जिएगा।" माधव ने सख्ती से कहा।
"मैं उसके साथ सख्त जरूर हूँ सर पर अपने बच्चे सा प्यार करता हूँ, मैं आपको जानता भी नहीं तो ऐसे कैसे भेज दूँ।" ढाबे का मालिक साहस जुटाकर बोला।
माधव ने अपनी जेब से अपना पहचान-पत्र निकालकर उसे दिखाया।
"ड्..डिप्टी मजिस्ट्रेट।" उसकी घिग्घी बँध गई।

माधव को आते देख मोनू सीधा होकर बैठ गया। छोटू मेज से बरतन उठा रहा था।
"बरतन यहीं छोड़ो और जाओ तुम्हारा सेठ बुला रहा है।" माधव ने बैठते हुए कहा।
वह जाने लगा तभी किसी ने आवाज दी, "छोटू एक कप चाय लाना।"
"छोटू! चाय कोई और दे देगा तू इधर आ।" तभी ढाबे का मालिक बोला। छोटू उधर ही मुड़ गया।

राधा और दादी गाड़ी की ओर चल दीं, साथ में मोनू अपना बैग लेकर पीछे-पीछे चल रहा था। माधव गाड़ी के पास ही बोनट से पीठ टिकाए खड़ा था तभी "बैग मैं ले लूँ?" अपने पीछे से आई आवाज सुनकर मोनू पलटा।
छोटू को ढाबे के मालिक के साथ पीछे ही खड़ा देखकर मोनू बैग उसकी ओर बढ़ाने ही वाला था तभी माधव बोल पड़ा- "नहीं मोनू, आज से यह तुम्हारा भाई है और हमारे साथ वैसे ही रहेगा जैसे तुम रहते हो।"
"क्या! सच बेटा!" दादी खुश होकर बढ़ीं और छोटू के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगीं, राधा के चेहरे पर भी खुशी दिखाई दी।
"वेलकम टू अवर फेमिली।" मोनू ने छोटू की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।
"आज इस चाय के ढाबे ने हमें दो उपहार दिए हैं न माँ!" राधा बोली।
"हाँ बहू, सही कह रही हो।" दादी अपने दोनों ओर बैठे मोनू और छोटू के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं।
गाड़ी वापस अपनी गति से चली जा रही थी, सभी बारी-बारी से छोटू से उसके बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे। आते समय जिस गाड़ी में खामोशी थी चाय के ढाबे से उसमें खुशियों की चहल-पहल जा रही थी।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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