आब-ए-आफ़ताब
अनुपम स्पंदन शबनम सा तेरी आँखों मे जो ठहर गया,
दिल में छिपे कुछ भावों को चुपके से कह के गुजर गया।
बनकर मोती ठहरा है जो तेरी झुकी पलकों के कोरों पर,
उसकी आब-ए-आफ़ताब पर ये दिल मुझसे मुकर गया।
जिन राहों पर चले थे कभी थाम हाथों में हाथ तेरा,
देख तन्हा उन्हीं...
आब-ए-आफ़ताब
