क्यों व्यथित मेरा मन होता है
कल्पना में उकेरा हुआ घटनाक्रम
पात्र भी जिसके पूर्ण काल्पनिक
चित्रपटल पर देख नारी की व्यथा
सखी क्यों मेरा हृदय रोता है
क्यों व्यथित.......
नहीं कोई सच्चाई जिसमें
महज अंकों में बँधा नाटक है
नारी पात्र की हर घटना को क्यों
मेरा दिल हर एक पल जीता है
क्यों व्यथित......
हर नारी की कथा एक सी
पुरुष सदा उसे छलता है
देख असहाय स्थिति में उसको
क्यों अश्रुधार कपोल भिगोता है
क्यों व्यथित........
जननी भार्या भगिनी और सुता
हर रूप में सिर्फ त्याग किया है
समाज के बदले रूप अनेकों पर
इनका अपना न कुछ होता है
क्यों व्यथित........
मालती मिश्रा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.11.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2529 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग जी मेरी रचना को शामिल करने तथा सूचित करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
हटाएंमेरी रचना को सम्मान देने व सूचित करने के लिए हृदयतल से आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मान देने व सूचित करने के लिए हृदयतल से आभार यशोदा जी।
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