शुक्रवार

पगडंडी मेरे गाँव की



वो टेढ़ी-मेढ़ी 
कहीं संकरी तो
कहीं उथली-सी
पगडंडी
गाँव के मुहाने से
शुरू होकर
खेतों के मोड़ों से
होती हुई
बगीचे को दो हिस्सों
में बाँटती
दूसरे गाँव में
पूरे हक से प्रवेश
करती 
अल्हड़ बाला-सी
कभी दाएँ 
तो कभी 
बाएँ
बलखाती 
इठलाती-सी
अन्जाने गाँवों में भी
पहचान बनाती
लोगों के दिलों में
उतरती हुई
अन्य ग्रामों के
खेतों बगीचों
को बाँटती काटती
लोगों की
आवाजाही को सुगम
बनाती
सड़कों के 
लंबे मार्ग को
छोटा बनाती हुई
कहाँ से शुरू
कहा खत्म
होगी
ये किसी को नहीं
बताती
हमारी प्यारी
पगडंडी
आज भी गाँवों
से हमारी 
पहचान कराती
कितनी ही पुरानी
हो पर
दिल से 
भुलाई न
जाती
मेरे गाँव की
वो सँकरी 
उथली बलखाती
पगडंडी
@मालतीमिश्रा
चित्र साभार... गूगल से

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2 टिप्‍पणियां:

  1. इन्हीं टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियों से तो मिट्टी की खुशबू आती है जिससे ज़िदगी का एहसास होता है, वरना शहर के सपाट सड़क की भीड़ में हम जाने कहाँ खो गये है।
    बहुत सुंदर रचना मालती जी।

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    उत्तर
    1. हौसला आफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया श्वेता जी🙏

      हटाएं

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