बुधवार

कृत्रिम मानवता

मानव होकर यदि मानवीय गुणों से रिक्त रहे तो मानव जन्म सार्थक नहीं हो सकता। सहृदयता और समभाव इसी गुण का हिस्सा है, कुछ लोगों में ये गुण जन्मजात होते हैं तो कुछ लोगों में ज्ञानार्जन के बाद आते हैं। जिनमें जन्मजात होते हैं उनमें तो स्वाभाविक रूप से सभी प्राणीमात्र के लिए ये भाव होते हैन किन्तु जिनमें ज्ञान प्राप्ति के बाद ये गुण पनपते हैं उनमें इन गुणों के साथ ही पात्रता का भी उत्सर्जन होता है। किसके प्रति सहृदयता का भाव रखना है? किन-किन को समानता के भाव से देखना है ? ये सब वो अपने ज्ञान औऋ पसंद के आधार पर तय करते हैं।
ऐसे व्यक्तित्व के स्वामी को जहाँ समाज में किसी एक वर्ग के एक व्यक्ति की पीड़ा इतना व्यथित कर देती है कि वह हफ्तों तक रूदन करते हैं तो वहीं दूसरे वर्ग के पूरे-पूरे समूह की तबाही व विनाश भी उनके हृदय को पिघला पाने में असमर्थ रहता है। एक ताजा उदाहरण तो आज का ही है बहुत से ऐसे बुद्धिजीवी हैं जो आज त्रिपुरा में लेनिन की एक मूर्ति गिराए जाने से भीतर तक काँप गए, दहशत में आ गए साथ ही देश के भविष्य और विश्व में इसकी उज्ज्वल छवि के लिए चिंतित भी हुए परंतु यही बुद्धिजीवी तब नहीं घबराए, न दहशत में आए न ही देश की छवि को लेकर चिंतित हुए जब ममता बनर्जी की अगुवाई में हिंदू मंदिरों को ढहाया गया। ये तब नहीं दहशत में नहीं आए जब हिंदुओं की पूरी की पूरी बस्ती जला दी गई।
कैसा ज्ञान है ये? कैसी मानवता है? जो किसी एक धर्म विशेष के लिए सो जाती है और संहारक तत्वों के प्रति मानवीय संवेदना व्यक्त करने के लिए जागृत हो उठती है।
#मालतीमिश्रा

Related Posts:

3 टिप्‍पणियां:

Thanks For Visit Here.