शनिवार

प्रकृति के नैसर्गिक रूप को बिगाड़ कर विकास संभव नहीं

 प्रकृति के नैसर्गिक रूप को बिगाड़कर विकास संभव नहीं

पर्यावरण प्रदूषण किसी एक देश नहीं बल्कि विश्व के सामने व्यापक समस्या बनकर खड़ा है। इसीलिए पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता लाने के उद्देश्य से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1972 में आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई और 5 जून 1974 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। किन्तु पर्यावरण की सुरक्षा किसी एक दिन के संकल्प से नहीं हो सकती बल्कि इसके लिए चहुँमुखी जागृति और क्रियान्वयन की आवश्यकता है। वर्तमान समय में जिस प्रकार से लगातार जनसंख्या बढ़ती जा रही है, उतनी ही तेजी से लोहे और कंक्रीट के जंगल भी बढ़ते जा रहे हैं, जिसका नकारात्मक प्रभाव सीधे पर्यावरण पर पड़ रहा है। प्रकृति के अपने कुछ नियम हैं, जिनके विपरीत विकास कार्य किए जा रहे हैं और जंगलों व नदियों के स्वरूपों को भी बिगाड़ा जा रहा है। इससे पृथ्वी का संतुलन भी बिगड़ रहा है। विकास के नाम पर पृथ्वी विनाश की प्रयोगशाला बनती जा रही है।

देश का विकास आवश्यक है, तभी देश के नागरिकों का विकास होगा और उन्हें सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी किन्तु विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति की ओर से विमुख हो जाने से हम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।  क्योंकि विकास के नाम पर लगातार पेड़ों की कटाई और जंगलों का खात्मा करके हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जिससे न सिर्फ नदी-तालाब सूखते जा रहे है, भूमिक्षरण बढ़ता जा रहा है, भूमि बंजर होती जा रही है और पशु-पक्षियों को बेघर करके उनसे उनके जीने का अधिकार छीन रहे हैं। विकास तो तभी संभव है जब देश का पर्यावरण स्वच्छ हो, चारों ओर हरियाली हो। जिस तरह से विकसित देश प्रकृति के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, विकासशील देश भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर अंधाधुंध प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं।  

विकास के नाम पर पहाड़ों-जंगलों को काटकर सुरंगें बनाना, नदियों-तालाबों को पाटकर ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी करना प्राकृतिक आपदा को आमंत्रित करना ही है।

देश को गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियाँ देने वाले पहाड़ के करीब 12 हजार प्राकृतिक स्रोत या तो सूख चुके हैं या फिर सूखने के कगार पर हैं। पानी और ऊर्जा के स्रोतों को विकृत और वायु को लगातार दूषित किया जा रहा है।

तूफान, भूकंप, बाढ़, सूखा, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण विकास के नाम पर प्रकृति से किए जा रहे खिलवाड़ के कारण ही हैं। केदारनाथ आपदा, नेपाल की महाविनाशकारी भूकंप, और समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ हमें चुनौती दे रही हैं कि यदि अंधाधुंध हो रहे प्राकृतिक दोहन को रोका नहीं गया तो आगे और भी भयानक परिणाम सामने आ सकते हैं। 

प्रकृति के नैसर्गिक रूप को बिगाड़कर, पर्यावरण को जहरीला करके विकास संभव नहीं।  

आज हम घरों को, बालकनियों को प्लास्टिक की हरियाली से कितना भी सजा लें किंतु हरियाली के नैसर्गिक गुण कहाँ से लाएँगे, उनसे प्राप्त होने वाली प्राणवायु और शीतलता इन दिखावटी पौधों से तो प्राप्त नहीं किया जा सकता। विकास के नाम पर बाग-बगीचे-जंगल काट कर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर उसमें मानव का निवास तो बन गया परंतु उनमें रहने वाले पशु-पक्षियों का आवास और भोजन छीन लिया गया, जिसके कारण न जाने कितने वन्य जीव दिन-प्रतिदिन लुप्त होते जा रहे हैं। वायु प्रदूषित होती जा रही है, नदियाँ सूखती जा रही हैं, जो हैं उनका जल विषैला होता जा रहा है, धरती की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है, जिसके कारण फसलों की अच्छी पैदावार के लिए रसायनिक खादों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। फलस्वरूप हमारा खानपान दूषित होता जा रहा है और बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। क्या इसे हम सार्थक विकास की श्रेणी में रख सकते हैं? सही मायने में स्वच्छ और प्रदूषण रहित वातावरण ही विकास को सार्थक कर सकता है। 

विकास आवश्यक है किन्तु प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना। अत: मौजूदा प्राकृतिक अस्थिरता से उबरने के लिए और पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए अंधाधुंध प्राकृतिक दोहन से बचते हुए अधिकाधिक वृक्षारोपण ही एकमात्र उपाय हो सकता है, क्योंकि वृक्ष ही हमें इस लाइलाज बीमारी से उबार सकते हैं। वृक्षों के महत्व को बताते हुए एक श्लोक प्रचलित है...

दशकूपसमा वापी, दशवापीसमो ह्रदः। दशह्रदसमो पुत्रो, दशपुत्रसमो द्रुमः।।

अर्थात् दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक सरोवर, दस सरोवरों के समान एक पुत्र और दस पुत्रों के समान एक वृक्ष का महत्त्व होता है। अत: हमारा कर्तव्य है कि विकास के नाम पर यदि हम एक वृक्ष काटते हैं तो हमें उससे पहले, दस वृक्ष लगाने चाहिए। इतना ही नहीं समाज के प्रत्येक व्यक्ति को प्रण करना चाहिए कि वह यथासंभव वृक्ष लगाएँगे और उनकी देखभाल करेंगे।


मालती मिश्रा 'मयंती'



2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-2-23} को जीवन का सच(चर्चा-अंक 4641) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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