सोमवार

गाँवों की सादगी खो गई

शहरों की इस चकाचौंध में 
गाँवों की सादगी ही खो गई
जगमग करते रंगीन लड़ियों में
अंबर के टिमटिमाते तारे खो गए।

लाउड-स्पीकर की तेज ध्वनि में
अपनापन लुटाती पुकार खो गई
डीजे की तेज कर्कश संगीत में
ढोल और तबले की थाप खो गई।

प्रतिस्पर्धा की होड़ में देखो
आपस का प्रेम-सद्भाव खो गया
भागमभाग भरे शहरों में
गाँवों का मेल-मिलाप खो गया।

मोटर-गाड़ियों के तेज हॉर्न में
बैलों के गले की घंटी खो गई
ए०सी०, कूलर की हवा में देखो
प्राकृतिक शीतल बयार खो गई।

नही रही पनघट की रौनक
नदिया का वो तीर खो गया
वहाँ खड़े वृक्षों को़े उर में
सिसक-सिसक कर पीर खो गया।

हल काँधे पर रख कर के
गाता हुआ किसान खो गया
गोधूलि की बेला में बजता
मीठा-मीठा तान खो गया।
मालती मिश्रा

Related Posts:

  • अधूरी कसमें...2 रात्रि का दूसरा प्रहर था, हड्डियाँ कंपकंपा देने वाली कड़ाके की ठंड, … Read More
  • 'माँ' तो बस माँ होती है। संतान हँसे तो हँसती है संतान के आँसू रोती है… Read More
  • हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि आर्थिक रूप से समर्थ लोग अपनी गैस सब्सि… Read More
  • क्या चाह अभी क्या कल होगी नही पता मानव मन को चंद घड़ी में जीवन के हाला… Read More

2 टिप्‍पणियां:

Thanks For Visit Here.