रविवार

जागो वीर....

रक्त है उबल रहा हृदय अब सुलग रहा
देशभक्ति रगों में जब-जब उबाल मारती
जयचंदों के मुंड अब धड़ों से विलग करो
जागो वीर तुमको माँ भारती पुकारती।

जाति-धर्म के नाम पर देश घायल हो रहा
आरक्षण संरक्षण का देश कायल हो रहा
योग्यता सिसक-सिसक न्याय को गुहारती
जागो वीर तुमको माँ भारती पुकारती।

सिक्को की खनक और नोटों की महक से
न्याय की देवी भी न्याय को है तोलती
अंधे कानून की आँखों की पट्टी नोच दो
जागो वीर तुमको माँ भारती पुकारती।

मर्यादा को भूल शिष्य गुरु पर हावी हो रहा
जन्म का राम अब मुहम्मद भावी हो रहा
नैतिकता और मर्यादा बस पुस्तकें सँवारती
जागो वीर तुमको माँ भारती पुकारती।

शिक्षा के मंदिरों से शिक्षा ही लुप्त है
स्वांग के मसीहा ही ऐसों से तृप्त हैं
फाइलों में बंद हो, सरस्वती पुकारती
जागो वीर तुमको माँ भालती पुकारती।

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8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह..वाह्ह्ह...ओजपूर्ण... जबर्दस्त.. ऐसे ही उद्गार की आवश्यकता है मालती जी जो आम जन के हृदय से अज्ञानता मिटा कर देशभक्ति का संचरण कर सके।
    बहुत बहुत सुंदर रचना..।👌👌👌👌

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    1. श्वेता जी इतने प्रभावी तरीके से उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से शुक्रिया🙏🙏

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  2. वाह !!! बेहद शानदार रचना ...लाजवाब !!!

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  3. वर्तमान में जो हो रहा है इसे समझकर भविष्य को जागरूक करती सशक्त रचना

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