घिरी चारों दिशाओं में
घटाएँ आज सावन की
सखियाँ गाती हैं कजरी
राग पिया के आवन की
कृषक का बस यही सपना
बदरी झूम-झूम बरसे
प्यास धरती कि बुझ जाए
खेत-खलिहान सब सरसे।।
तपन धरती कि मिट जाए
सखी मधुमास है आया
कजरी और झूले संग
विपदा केरल की लाया।।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
घटाएँ आज सावन की
सखियाँ गाती हैं कजरी
राग पिया के आवन की
कृषक का बस यही सपना
बदरी झूम-झूम बरसे
प्यास धरती कि बुझ जाए
खेत-खलिहान सब सरसे।।
तपन धरती कि मिट जाए
सखी मधुमास है आया
कजरी और झूले संग
विपदा केरल की लाया।।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.8.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3072 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद आ० विर्क जी
हटाएंया खुदा तेरा ये करिश्मा
जवाब देंहटाएंकहीं धूप कहीं छाया।
पश्चमी राजस्थान में सुखा
और केरल में भयंकर बाढ।
सुंदर रचना।
समसामयिक का समावेश
अपने विचारों से अवगत कराने के लिए सादर आभार रोहिताश जी
हटाएंआया तो है पर झूमता-गाता नहीं, तांडव मचाता
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है गगन जी
हटाएंअलग-अलग रूप सावन के
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक रचना
सादर आभार कविता जी
हटाएंआभार🙏
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
जवाब देंहटाएं