बुधवार

सावन आया

घिरी चारों दिशाओं में
घटाएँ आज सावन की
सखियाँ गाती हैं कजरी
राग पिया के आवन की

कृषक का बस यही सपना
बदरी झूम-झूम बरसे
प्यास धरती कि बुझ जाए
खेत-खलिहान सब सरसे।।

तपन धरती कि मिट जाए
सखी मधुमास है आया
कजरी और झूले संग
विपदा केरल की लाया।।

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.8.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3072 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. या खुदा तेरा ये करिश्मा
    कहीं धूप कहीं छाया।

    पश्चमी राजस्थान में सुखा
    और केरल में भयंकर बाढ।

    सुंदर रचना।
    समसामयिक का समावेश

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    1. अपने विचारों से अवगत कराने के लिए सादर आभार रोहिताश जी

      हटाएं
  3. आया तो है पर झूमता-गाता नहीं, तांडव मचाता

    जवाब देंहटाएं
  4. अलग-अलग रूप सावन के
    बहुत अच्छी सामयिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. कृषक का बस यही सपना
    बदरी झूम-झूम बरसे
    प्यास धरती कि बुझ जाए
    खेत-खलिहान सब सरसे।।
    .
    बेहद ख़ूबसूरत

    जवाब देंहटाएं

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