...मैं नारी हूँ...
हाँ मैं नारी हूँ
निरीह कमजोर
तुम्हारे दया की पात्र
तुमसे पहले जगने वाली
तुम्हारे बाद सोने वाली
तुम्हारी भूख मिटाकर
तृप्त करने वाली
तुम्हें संतान सुख देने वाली
तुम्हारे वंश को
आगे बढ़ाने वाली
अहर्निश अनवरत
तुम्हारी सेवा करने वाली
फिर भी तुमसे
कुछ न चाहने वाली
सिर्फ और सिर्फ
कर्म करने वाली
तुम्हारे अहं पिपासा को
शांत करने वाली
सिर्फ एक औरत
फिरभी तुम महान
और मेरे भगवान
कैसे???????
अब तक दिया तो सिर्फ
मैंने है
किया तो सिर्फ
मैंने है
त्यागा तो सिर्फ
मैंने है
और बदले में
कुछ नहीं माँगा
फिर तुम महान
और मैं निरीह
कैसे????
©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 सितंबर 2020) को 'दीन-ईमान के चोंचले मत करो' (चर्चा अंक-3831) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आ०, मैं अवश्य आऊँगी लिंक पर।
हटाएंसही बात है सब कुछ सहने टरने देने वाली होकर भी नारी निरीह और पुरुष भगवान..।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक प्रश्न...।
बहुत समय बाद आपको यहाँ देखकर बहुत प्रसन्नता हुई आ० सुधा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंकोमल भावनाओं युक्त सुंदर रचना !!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई मालती मिश्रा 'मयंती' जी !!!
🙏आत्मीय आभार महोदया
हटाएंमेरे ब्लॉग को फॉलो करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
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