रविवार

व्याधि तू पास क्यों आया


 जब व्याधि से हो घिरा शरीर, 

हृदय में चुभते सौ-सौ तीर।

रंग नहीं दुनिया के भाए,

अपनेपन की चाह सताए।


ऐ व्याधि तू पास क्या आया

सब अपनों नें रंग दिखाया।

जब से तूने मुझको घेरा,

मुख मेरे अपनों ने फेरा।


मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

2 टिप्‍पणियां:

  1. रहिमन विपदा हूँ भली, जो थोड़े दिन होय।
    हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।

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    1. सत्य है कविता जी, विपत्ति अपने-पराए की पहचान करवा देती है। यह दोहा सार्थक और सकारात्मक संदेश देता है। धन्यवाद।

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