रजनी के बालों से बिखरे हुए
मोती बटोरने,
प्राची के प्रांगण में ऊषा
स्वर्ण थाल लेकर आई।
देखकर दिनकर की स्वर्णिम सवारी
तन डाल सुनहरी चूनर
रजनी शरमाई।
मुखड़ा छिपाया बादलों के
मखमली ओट में,
संग छिपने को तारक
सखियाँ बुलाई।
पूरी रात बाट जोहती जिसके आने की,
देख उसकी सवारी छिपने की
जुगत लगाई।
मोती पिघल-पिघल लगे नहलाने
नाज़ुक कोपलों को,
दिवाकर की स्वर्ण चादर
वसुधा पर बिछाई।
खगकुल पशु चारण सब गाने लगे
मंगल गान,
आनंद मग्न करने लगे
रजनी की विदाई।।
मालती मिश्रा 'मयंती'✍️
0 Comments:
Thanks For Visit Here.